विनीत प्लेटफार्म पर बेतहाशा भागता जा रहा था, क्योंकि ट्रेन चल पड़ी थी. अगर यह गाड़ी छूट जाती तो पूरे 6 घंटे बाद ही उसे दूसरी गाड़ी मिलती. यही सोच कर उस ने आखिरी डब्बा पकड़ना चाहा.

अगर वह लड़की उस पल विनीत का हाथ न पकड़ती, तो शायद वह गाड़ी के नीचे ही आ जाता.

उस लड़की का नाम सुधा था. उस ने कहा, ‘‘अगर आप का हाथ छूट जाता तो क्या होता?’’

विनीत कुछ नहीं बोला, बस एहसान जताती निगाहों से उसे देखता रहा.

‘‘अरे, आप तो हांफ रहे हैं… चलिए, मेरी सीट पर बैठ जाइए,’’ कहते हुए सुधा चल पड़ी.

विनीत सुधा के पीछेपीछे चल पड़ा. वह अपनी मंडली में आते हुए बोली, ‘‘वनी, हटना. इन्हें बिठाना है.’’

एक अनजान नौजवान को सुधा के साथ देख कर वनी सवालिया निगाहों से उसे घूरते हुए थोड़ा खिसक गई.

सुधा ने पानी का गिलास विनीत की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए, गला तर कर लीजिए,’’ फिर उस ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘वनी, ये साहब भागतेभागते डब्बा पकड़ रहे थे. अगर मैं सहारा…’’

‘‘तो बेचारे चारों खाने चित हो जाते,’’ हंसते हुए सुधा की सहेली वनी ने बात पूरी की, ‘‘अरे सुधा, तू भी बैठ जा हमारे पास.’’

सुधा विनीत के पास बैठ गई.

ट्रेन तेज रफ्तार से भागती जा रही थी. थोड़ी देर चुप्पी छाई रही, फिर विनीत ने पूछा, ‘‘आप कहां तक जाएंगी?’’

‘‘चंडीगढ़,’’ सुधा ने कहा.

‘‘मुझे भी तो वहीं जाना है. वहां किस जगह?’’

‘‘कालेज की ओर से खेलों में हिस्सा लेने जाना है,’’ वनी ने कहा.

‘‘मैं भी तो वहां बैडमिंटन खेलने जा रहा हूं,’’ विनीत ने मुसकराते हुए कहा.

विनीत के सजीलेपन से सुधा बहुत खुश हुई. रास्ते में जहां भी ट्रेन रुकती, चायनाश्ता लेने विनीत ही उतरता था. पूरे 7 घंटे बाद सभी चंडीगढ़ जा पहुंचे.

सुधा और वनी की हौकी की टीम जीत चुकी थी. इधर विनीत का खेल भी बहुत अच्छा रहा.

इन 2-3 दिनों में सुधा और विनीत बहुत करीब आ चुके थे. एक दिन खेल खेलने के बाद शाम को दोनों घूमने निकल पड़े. आसमान पर कालेकाले बादल तैर रहे थे. ठंडी हवा चल रही थी. वे एक पार्क में आ बैठे. रंगबिरंगे फूलों के बीच फुहारे बड़े सुंदर लग रहे थे. विनीत आइसक्रीम ले आया.

सुधा ने कहा, ‘‘इस को लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘देखती नहीं, अभी कितनी गरमी पड़ रही है.’’

फिर वह आइसक्रीम का मजा लेते हुए बोला, ‘‘सुधा, 2-3 दिन पता ही नहीं चले कि कैसे कट गए.’’

‘‘हां,’’ सुधा ने धीरे से कहा.

‘‘घर जा कर कहीं तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘नहीं, अब मैं भला तुम्हें कैसे भुला सकती हूं. तुम तो मेरी धड़कन बन चुके हो,’’ विनीत के पास सिमटते हुए सुधा ने जवाब दिया.

‘‘तो मैं समझूं कि मैं तुम्हें प्यार कर सकता हूं?’’

सुधा शरमा गई. जिंदगी में पहली बार उसे किसी से प्यार हुआ था.

अचानक रिमझिम पानी बरसने लगा. विनीत बोला, ‘‘आओ सुधा, चलें. लगता है, तेज बारिश होगी.’’

सुधा उठने लगी तो जोर की बिजली कड़की. सुधा डर कर विनीत से लिपट गई, तो विनीत ने भी उसे बांहों में जकड़ लिया.

पार्क खाली होने लगा था. थोड़ी देर रुकने के लिए वे दोनों वहीं पास की खाली कोठरी में चले गए.

अब जोरों से बारिश होने लगी. उन्हें उम्मीद थी कि बिन मौसम की बरसात है, इसलिए जल्दी ही बादल छंट जाएंगे, लेकिन उन का सोचना गलत था.

रात बहुत हो चुकी थी. बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. भीगने की वजह से सुधा ठंड से कांप रही थी.

विनीत ने सुधा का हाथ अपने हाथ में ले लिया. इतना भीगने पर भी सुधा के जिस्म से आग बरस रही थी.

विनीत सुधा को अपने आगोश में लेने लगा, तो वह बोली, ‘‘नहीं, अभी नहीं विनीत.’’

‘‘लेकिन, इस मौसम ने मुझे पागल बना दिया है. मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह पाऊंगा,’’ विनीत हवस की आग में जल रहा था.

सुधा का तेजी से दिल धड़क उठा. उस के जिस्म में तूफान उमड़ रहा था. वह भी जैसे सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. उस ने खुद को विनीत के हवाले कर दिया.

काफी देर बाद जब बारिश रुकी, तो वे किसी तरह होस्टल में पहुंचे और चुपचाप अपनेअपने कमरे में जा कर दुबक गए.

घर आ कर सुधा को लगा कि वह बहुत बड़ा जुर्म कर के आई है. कहीं विनीत बेवफा निकला, तो क्या होगा. नहीं, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. लेकिन अब सोचने से क्या फायदा था. तीर कमान से निकल चुका था.

सुधा अंदर ही अंदर घुटने लगी. अगर कुछ हो गया तो वह अपने पिताजी को क्या बताएगी, जिन्होंने उसे इतनी आजादी दे रखी थी. वह क्यों इस चक्रव्यूह में फंस गई?

तकरीबन एक महीने बाद डाकिया एक लिफाफा दे गया. जब उसे खोला तो सुधा खुशी से झूम उठी. उस में लिखा था, ‘सुधा, अगले महीने मेरे बाबूजी तुम्हारे यहां रिश्ता तय करने आ रहे हैं. दूसरी खुशखबरी है कि मुझे नौकरी भी मिल गई है. तुम्हारा, विनीत.’

जब विनीत के पिता सुधा को देख कर लौटे, तो उन का चेहरा गुस्से से लालपीला हो रहा था. आते ही वे बोले, ‘‘एक बात कान खोल कर सुन लो. तुम्हारी शादी उस बदनाम लड़की से कभी नहीं हो सकती.’’

‘‘लेकिन क्या हुआ? कुछ बताइए न. पिताजी, मुझे पूरी उम्मीद है कि सुधा ऐसी नहीं हो सकती,’’ विनीत जल्दी से बोला.

‘‘मैं कहता हूं, उस लड़की को भूल जाओ. वह तो अच्छा हुआ कि मेरा पुराना दोस्त डाक्टर मदन मिल गया. अगर वह समय पर नहीं बताता, तो

हम अपनी बिरादरी में नाक कटा बैठते. जानते हो, वह लड़की मां बनने वाली है.’’

‘‘लेकिन पिताजी, आप मेरी बात सुन लीजिए,’’ गुजारिश करते हुए विनीत ने कहा.

‘‘नहीं बेटा, मेरे जीतेजी यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ नफरत से उन्होंने मुंह फेर लिया.

‘‘नहीं पिताजी, मेरे जुर्म की सजा आप सुधा को मत दीजिए. गलती मेरी ही है. उस की होने वाली औलाद का पिता मैं ही हूं.’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ फिर थोड़ी देर रुक कर वह मुसकराते हुए बोले, ‘‘बेटा, मुझे खुशी है कि इतना सब होते हुए भी तुम ने उस लड़की को अपनाने की बात की है.’’

विनीत के चेहरे पर मुसकान तैर गई. कुछ दिनों बाद विनीत और सुधा का ब्याह हो गया.

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