उत्तराखंड के काफी खूबरसूरत लैंसडाउन इलाके में बहुत से सैलानी आते हैं. वहां का मौसम है ही इतना खुशनुमा कि शहरी लोगों को अपनी तरफ खींच ही लेता है. इसी के चलते वहां बहुत से छोटेबड़े होटल, ढाबे और रैस्टोरैंट बन गए हैं. अब तो रिजौर्ट भी खूब दिखने लगे हैं.

इसी लैंसडाउन इलाके में बनी एक गैस एजेंसी से जुड़े दर्जनों गांवों में लोग आज भी वहां गैस की गाड़ी का इंतजार कर रहे थे. वजह, काफी समय से चैलूसैंण गांव के अलावा पाली, शीला, सुराड़ी, धुरा, सिलोगी, बाघों, अमलेशा और रिंगालपानी जैसे बहुत से गांवों में घरेलू गैस नहीं पहुंच पा रही थी.

‘‘अरे, यहां जमा हो कर क्या होगा. गैस एजेंसी का मालिक कालाबाजारी का शातिर खिलाड़ी है. वह घरेलू गैस को तिकड़मबाजी से होटल, ढाबे और रैस्टोरैंट वालों को बेच देता है और भारी मुनाफा कमाता है,’’ सिलोगी गांव के पान सिंह ने कहा.

‘‘केंद्र की मोदी सरकार कितना भी दावा कर ले कि ‘न खाएंगे और न खाने देंगे’, पर कालाबाजारी हद पर है और नेताओं की नाक के नीचे सब गोरखधंधा हो रहा है,’’ सुराड़ी के नरेंद्र सिंह ने कहा और गुस्से में सड़क पर ही थूक दिया.

पाली गांव के दर्शन कुमार ने दबी जबान में कहा, ‘‘शहर में पैट्रोमैक्स (छोटे गैस सिलैंडर) में गैस रिफिल का धंधा भी जोरों पर चल रहा है. शहर में गैस की सप्लाई सामान्य हो या फिर कितनी भी किल्लत चल रही हो, लेकिन पैट्रोमैक्स में आसानी से गैस मिल जाती है.

‘‘इन पैट्रोमैक्सों में 100 रुपए किलो गैस बेची जाती है. साफ है कि 450 रुपए का गैस सिलैंडर रिफिल कर के 1,600 रुपए में बिक रहा है. आखिर इन को कहां से सिलैंडर मिल रहे हैं?’’

धुरा गांव के संदीप सिंह ने नया ही बम फोड़ा, ‘‘हरिद्वार की खबर नहीं सुनी क्या तुम लोगों ने… वहां तो उज्ज्वला योजना में ही फर्जीवाड़ा सामने आया है. लोग फर्जी दस्तावेज लगा कर मुफ्त कनैक्शन और सब्सिडी पा रहे हैं. इन में ऐसे लोग

भी शामिल हैं, जिन के पास अपनी कार है. खुद को गरीब दिखा कर हम जैसों के पेट पर लात मारते हैं.’’

‘‘हां, मैं ने भी यह खबर पढ़ी थी. हरिद्वार जिले में डेढ़ लाख ऐसे कनैक्शनों की जांच हो रही है. पुष्पक गैस एजेंसी के मैनेजर राकेश सिंह के मुताबिक, कई उपभोक्ताओं की मौत हो चुकी है, फिर भी कनैक्शन से सप्लाई और सब्सिडी जारी हो

रही है,’’ चैलूसैंण गांव के हिम्मत सिंह ने बताया.

‘‘सरकार धार्मिक जगहों को तो संवार रही है, सड़कें और सुरंगें बनाने के दावे कर रही है, पर पहाड़ की गरीब जनता की सुध नहीं ले रही है. हमारे गांव के गांव खाली हो रहे हैं, पर सरकार चाहती है कि रिजौर्ट में अमीर लोग खूब आते रहें.

‘‘अरे, जब उन की सेवा करने के लिए पहाड़ी लोग ही नहीं बचेंगे, तो वे क्या खाक हमारी वादियों का मजा ले पाएंगे. एक मैगी बनाने वाले को भी सस्ता सिलैंडर चाहिए, लेकिन इस कालाबाजारी ने सब बेड़ा गर्क कर के रख दिया है,’’ पास खड़े मैगी बनाने वाले पवन राजपूत ने अपना दर्द बयां किया.

इन सब लोगों में 23 साल का प्रेम रावत भी शामिल था, जो अमलेशा गांव में रहता था. यह गांव पौड़ीगढ़वाल जिले के जयहरीखाल ब्लौक और लैंसडाउन तहसील में था, जो अमकटाला ग्राम पंचायत के तहत आता था. इस गांव का भौगोलिक क्षेत्रफल 114.41 हैक्टेयर था.

ऐसा बताया जाता है कि अमलेशा गांव की कुल आबादी 151 थी, जिस में 44 परिवार शामिल थे. प्रेम रावत का परिवार भी उन में से एक था. घर कच्चा था और रोजगार की कमी. खेती से मुश्किल से गुजारा होता था और बीए करने के बावजूद प्रेम रावत को उत्तराखंड में ही कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही थी. वह अपने दोस्तों की तरह दिल्ली के होटलों में बरतन घिस कर अपनी जिंदगी को नरक नहीं बनाना चाहता था.

प्रेम रावत भी घरेलू गैस सिलैंडर पाने की आस में गैस एजेंसी आया था, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. प्रदेश में ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ शुरू होने के बाद घरघर गैस सिलैंडर तो पहुंच गए हैं, लेकिन पर्वतीय इलाकों में अब भी सिलैंडर रिफिल कराने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता था या कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से कालाबाजारी कोढ़ पर खाज साबित हो रही थी.

प्रेम रावत को आज भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा था. उसे अपनी मां कटोरी देवी की याद आ गई, जिस की धुएं की वजह से फेफड़े और आंखें कमजोर हो गई थीं. पिता श्याम सिंह रावत की आमदनी से किसी तरह घर का खर्च चलता था. कमाई के आधे से ज्यादा रुपए लकड़ीचूल्हा में खर्च हो जाते थे.

प्रेम अभी गांव की बस का इंतजार कर ही रहा था कि उसे अपने ही गांव की ज्योति नयाल आती दिखी. वह 22 साल की जवान लड़की थी. दुबलीपतली, पर बहुत गोरी और खूबसूरत. प्रेम उस के रूप का दीवाना था.

ज्योति अपने पिता के साथ खेतीबारी में हाथ बंटाती थी और उस ने अपने घर में एक बड़े कमरे में मशरूम की खेती भी कर रखी थी. उस के उगाए मशरूम लोकल होटल में सप्लाई होते थे.

प्रेम और ज्योति बस का इंतजार करने लगे. आज प्रेम सोच रहा था कि वह ज्योति से अपने दिल की बात कह देगा, पर उसे शक था कि क्या ज्योति एक बेरोजगार के प्यार को अपना लेगी?

‘‘बड़े दिनों में नजर आई. कहां रहती हो आजकल? कोई खैरखबर नहीं,’’ प्रेम ने पूछा.

ज्योति ने एक नजर उसे देखा और बोली, ‘‘सारी खैरखबर मैं ही लूं? तुम भी तो फोन कर सकते थे. अभी मैं मशरूम सप्लाई कर के आ रही हूं.

‘‘लैंसडाउन में आज भी गैस कंपनी के आगे लोगों की भीड़ जमा थी. गांव वालों को घरेलू गैस चूल्हे की सप्लाई नहीं हो रही है. बड़ी दिक्कत होने लगी है. तुम तो जानते ही हो कि जंगल से जलावन लकड़ी लाने में औरतों को कितना खतरा रहता है,’’ ज्योति ने कहा.

‘‘पिछले साल के दिसंबर महीने की ही तो खबर है, जब लैंसडाउन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के तहत टाटरी गांव में भालू के हमले से एक औरत गंभीर रूप से घायल हो गई थी.

‘‘खबर में बताया गया था कि टाटरी गांव की कुसुम देवी जंगल में चारा लेने गई थी कि तभी भालू ने उस पर हमला बोल दिया. वह तो भला हो कि कुसुम देवी ने दरांती से भालू पर जोरदार हमला किया और अपनी जान बचा ली, वरना कुछ भी हो सकता था,’’ प्रेम ने ज्योति के डर को खबर का जामा पहना दिया.

ज्योति का मूड खराब हो गया. बस भी तो नहीं आ रही थी. इतने में उन्हीं के गांव का राम सिंह वहां आ गया, जो एक होटल में कुक था. वह गढ़वाली खाना बनाने में माहिर था.

राम सिंह को देख प्रेम ने कहा, ‘‘इन लोगों के चलते घरेलू गैस की कालाबाजारी होती है. हमारे हिस्से के सिलैंडर ये लोग हड़प लेते हैं.’’

यह सुन कर राम सिंह चिढ़ गया और प्रेम का गरीबान पकड़ लिया और डपट कर बोला, ‘‘इतना ही दर्द हो रहा है तो गैस एजेंसी फूंक दो न. वे लोग ही कालाबाजारी करते हैं. अगर किसी को घरबैठे सिलैंडर मिल जाए, तो कोई पागल ही होगा जो मना करेगा.’’

ज्योति ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘छोड़ इसे. नौकरी के नशे में इतने भी मत उड़ो कि आसापास का कुछ भी न दिखे. अपनी ताकत खाना बनाने के लिए बचा कर रखो. घर पर भी रसोई बनानी होगी.’’

राम सिंह ने प्रेम को तो छोड़ दिया, पर ज्योति को घूरते हुए बोला, ‘‘सब सम?ाता हूं कि तुम दोनों में क्या खिचड़ी पक रही है. पूरे पहाड़ पर गूंज रही तेरी और प्रेम की लवस्टोरी.’’

‘‘तो तेरे पेट में क्यों दर्द हो रहा है? लगता है, आज होटल में देशी दारू नहीं मिली, जो मरोड़ उठ रही है,’’ ज्योति ने खरीखरी सुना दी.

राम सिंह गुस्से में पैर पटकता हुआ चला गया. प्रेम को अंदाजा नहीं था कि राम सिंह इस तरह की बात बोल देगा. वह डर गया. उसे लगा कि ज्योति को बुरा लगा होगा. वह चुप ही रहा.

इतने में बस आ गई. ज्योति बोली, ‘‘चलना है कि नहीं या यहीं बुत बने खड़े रहोगे?’’

प्रेम बस में चढ़ गया. ज्यादा भीड़ नहीं थी. उन्हें सीट मिल गई. दोपहर के 3 बजे थे. वे शाम तक घर पहुंच जाते. ड्राइवर ने गढ़वाली गाना ‘मेरी प्यारी सुशीला’ बजा रखा था.

सीट पर बैठते ही ज्योति ने प्रेम के कंधे पर सिर टिका दिया और अपनी आंखें बंद कर लीं. प्रेम की बांछें खिल गईं. उस ने ज्योति का हाथ पकड़ लिया. ज्योति आंखें बंद किए ही मुसकरा दी. इस के बाद पता ही नहीं चला कि कब उन का गांव आ गया.

ज्योति से विदा ले कर प्रेम अपने घर पहुंचा. मां रसोई में दालभात पका रही थीं. वहां नया भरा गैस चूल्हा देख कर प्रेम हैरत में पड़ गया.

‘‘यह नया चूल्हा कौन लाया?’’ प्रेम ने अपनी मां से पूछा.

‘‘तेरे पिताजी. बस, दलाल को 300 रुपए ऊपर से दिए. बोले कि कब तक लकड़ी के धुएं में अपनी आंखें फोड़ती रहेगी.

‘‘बेटा, अब जल्दी से कोई नौकरी देख कर ब्याह कर ले और मेरे लिए कमेरी बहू ले आ. अब मैं थक चुकी हूं अकेले काम करतेकरते,’’ इतना कह कर मां चूल्हे में फूंकनी से आंच तेज करने लगीं.

प्रेम छत पर चला गया. उसे ज्योति की याद आ गई. उस ने मन ही मन राम सिंह का शुक्रिया अदा किया, जिस ने आज ऐसा सच बोला, जो घरेलू गैस की कालाबाजारी से ज्यादा बड़ा था, पर उतना घिनौना नहीं. इस सच ने तो ज्योति और प्रेम को और नजदीक ला दिया था.

छत से तारों को देखता हुआ प्रेम नई जिंदगी के सपनों में खो गया. पड़ोस के घर पर रेडियो में वही गढ़वाली गाना ‘मेरी प्यारी सुशीला’ बज रहा था.

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