वकील साहिबा के जज्बातों को शायद मैं ने ही जगा दिया था. और कहीं मैं खुद भी उन का सानिध्य पाने को आतुर हो गया था. तभी एकदूसरे का संबल बनते हुए चार कदम ही चले थे कि दोराहा आया और अलग हो गए.