मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था... आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न... भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’
‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन है, तो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’
‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं... पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते न? दीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’
‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’
‘‘डार्लिंग, इतना क्यों बिगड़ती हो... हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं... अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है... मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’
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‘‘जी हां, बड़ी मेहरबानी आप की... हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’
‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’
‘‘यह हमेशा होता है... हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’
‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो... क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा है? हमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’