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‘‘लक्ष्मी, एक अच्छी खबर है.’’ ‘‘क्या...?’’ लक्ष्मी ने पूछा. ‘‘मैं ने अपनी रीना का रिश्ता पक्का कर दिया है.’’ ‘‘अभी वह 14 साल की ही तो है.’’ ‘‘चुप रह. ज्यादा जबान न चलाया कर. 1-1 कर के 4-4 बेटियां पैदा कर दीं और अब मुझे कानून पढ़ा रही है. ‘‘बैजनाथ अपने भतीजे रमेश के लिए अपनी रीना का हाथ मांग रहे थे. मैं ने हां कर दी. शाम को 4-5 लोग रिश्ता पक्का करने के लिए आएंगे. रीना  को तैयार कर देना. यह पकड़ मिठाई  का डब्बा.’’ ‘‘कैसी बात कह रहे हैं रीना के बापू. कहां हमारी नाजुक सी बेटी और कहां तुम्हारी उमर का दुहाजू रमेश.’’ ‘‘बस, अब आगे जबान मत खोलना. आदमी की उम्र नहीं देखी जाती है, उस की कमाई देखी जाती है. मुंबई में तुम्हारी बेटी राज करेगी.

‘‘पूरीसब्जी बना लेना. खाना अच्छी तरह बनाना, कुछ गड़बड़ मत करना. रमेश वहां टैक्सी चलाता है. 1,000 रुपए तो रोज के आसानी से कहीं गए नहीं हैं. वह बता रहा था.’’ शाम को रमेश अपने काकाकाकी को ले कर आया. लाल चमकीली कढ़ी हुई साड़ी, पायलचूड़ी और सोने की अंगूठी पहना कर रीना की शादी पक्की कर दी. ढोलक पर गीत गाए गए, खानापीना और रात में शराब का पीनापिलाना भी हुआ. रीना के लिए शादी का मतलब केवल सजनासंवरना, बढि़या साड़ी, चूड़ी, पायल, महावर, सिंदूर, पाउडर और लिपिस्टिक था. उस की निगाहें तो उस सामान से हट कर रमेश की तरफ गई ही नहीं. अम्मां आंसुओं से रोई जा रही थीं.

बापू गाली दे कर बोल रहे थे, ‘‘असगुन मना रही है रोरो कर.’’ रीना तो अपनी शादी के बाद मुंबई जाने की खुशी में फूली नहीं समा रही थी. उस ने जल्दीजल्दी चूडि़यां पहन लीं, पाउडर और लिपिस्टिक लगा कर वह खुद को बारबार आईने में देख रही थी.  तभी रीना की सहेलियां सोनाली और गौरी आ गईं और उस की साड़ी, पायल और अंगूठी को लालची निगाहों से छूछू कर देखने लगीं. उन लोगों की निगाहों में उस के लिए जलन थी. ‘‘क्या री रीना, अब तू मुंबई में रहेगी?’’  ‘‘और नहीं तो क्या. मैं वहां फिल्म देखने जाऊंगी.’’ रीना दिनरात मुंबई नगरी के ख्वाबों में खोई रहती. कैसा होगा मुंबई शहर? वह तो कभी रेलगाड़ी में भी नहीं बैठी थी. कभी गांव से बाहर ही नहीं गई थी.

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