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Writer- जसविंदर शर्मा 

मैं ने मां को बुलाया. ‘उसे’ घर के बाहर पा कर मां तो भड़क गईं. वे उस पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगीं. मां ने उसे धमकाया कि अगर ‘वह’ दोबारा इधर दिखी तो वे पुलिस को बुला लेंगी. ‘वह’ शांत बनी नीची नजर से धरती की तरफ देखती रही. उस की आंखें हमारे घर के अंदर कुछ ढूंढ़ रही थीं. उसे पता था कि मेरे पापा अंदर ही होंगे.

मां के इस प्रहार से एक मिनट के लिए तो वह घबरा गई. वह कुछ कहना चाहती थी मगर मां ने उसे मुंह खोलने का अवसर ही नहीं दिया. उस ने अपमान का कड़वा घूंट चुपचाप पी लिया.

वह चुपचाप वापस चली गई. पिछले एक सप्ताह से मां और पापा के बीच ‘उसे’ ले कर घमासान चल रहा था. पापा औफिस नहीं गए थे. मां उन्हें बाहर जाने नहीं दे रही थीं. सो, वह उन का पता करने आई थी. उस नादान उम्र में मैं साफ नहीं जान पाती थी कि बड़े लोग एकदूसरे के साथ कैसेकैसे खेल खेलते हैं. उन का व्यवहार हम बच्चों की समझ से बाहर था.

पापा की इस लंपट प्रवृत्ति के कारण हमारे घर में सदा शीतयुद्ध छिड़ा रहता था. पापा के अन्य स्त्रियों से भी अनैतिक संबंध थे और मां ने अपने विवाहित जीवन के पहले 10 वर्ष पापा की इन इश्कमिजाज पहेलियों को सुलझाने में ही होम कर दिए थे. रोमांस उन के जीवन से कोसों दूर था.

मां गोरीचिट्टी और जहीन दिमाग की भद्र महिला थीं. मगर पापा को तो तीखी व तुर्श स्त्रियां भाती थीं. पापा तो मां की सहेलियों से भी रोमांटिक संबंध बना लेते और फोन पर बतियाते रहते. मां किसकिस सौतन से उन का बचाव करतीं.

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