‘‘क्यों, क्या शादीशुदा लाइन नहीं मारते?’’
‘‘मारते हैं लेकिन उन का स्टाइल जरा पोलाइट होता है जबकि कुंआरे सीधी बात करते हैं.’’
‘‘आप को बड़ा तजरबा है इस लाइन का.’’
‘‘आखिर शादीशुदा हूं. तुम से सीनियर भी हूं,’’ बड़ी अदा के साथ मिसेज बख्शी ने कहा.
दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.
‘‘आजकल बख्शी साहब की नई सहेली कौन है?’’
‘‘कोई मिस बिजलानी है.’’
‘‘और आप का सहेला कौन है?’’
‘‘यह पता लगाना बख्शी साहब का काम है,’’ इस पर भी जोरदार ठहाका लगा.
‘‘और तेरा अपना क्या हाल है?’’
‘‘आजकल तो अकेली हूं. पहले वाले की शादी हो गई. दूसरे को कोई और मिल गई है. तीसरा अभी कोई मिला नहीं,’’ बड़ी मासूमियत के साथ ज्योत्सना ने कहा.
‘‘इस नए कस्टम अधिकारी के बारे में क्या खयाल है?’’
‘‘हैंडसम है, बौडी भी कड़क है. बात बन जाए तो चलेगा.’’
‘‘ट्राई कर के देख. वैसे अगर मैरिड हुआ तो?’’
‘‘तब भी चलेगा. शादीशुदा को ट्रेनिंग नहीं देनी पड़ती.’’
फिर इस तरह के भद्दे मजाक होते रहे. ज्योत्सना अपने केबिन में चली गई. मिसेज बख्शी ने अपने फिक्स्ड अफसर को फोन कर दिया. मालखाने में जमा माल थोड़ी खानापूर्ति और थोड़ा आयात कर जमा करवाने के बाद छोड़ दिया गया.
मिसेज बख्शी कीमती इलैक्ट्रौनिक उपकरणों का कारोबार करती थीं. वे विदेशों से पुरजे आयात कर, उन को एसेंबल करतीं और उपकरण तैयार कर अपने ब्रैंड नेम से बेचती थीं.
उपकरणों का सीधा आयात भी होता था मगर उस में एक तो समय लगता था दूसरे, पूरा एक कंटेनर या कई कंटेनर मंगवाने पड़ते थे. जमा खर्च भी होता था. पूंजी भी फंसानी पड़ती थी.
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