पत्र पूरा होते ही सब सिर झुका कर बैठ गए. ‘‘मैं अभी आया,’’ कह कर प्रशांत सर लंबेलंबे डग भरते हुए दूसरे कमरे की ओर चल दिए.
कुछ देर बाद वे एक व्हीलचेयर को पीछे से सहारा देते हुए चला कर ला रहे थे. व्हीलचेयर पर एक महिला गाउन पहने बैठी थी. शांत, सौम्य चेहरा, स्नेह से भरी बड़ीबड़ी आंखें, बालों से झांकती हलकी चांदी और कंधे पर आगे की ओर लटकती हुई लंबी सी चोटी.
प्रशांत सर नम आंखों से सब की ओर देख कर व्हीलचेयर पर बैठी महिला से परिचय करवाते हुए बोले, ‘‘मिलिए इन से, मेरे सुखदुख की साथी, मेरे जीवन की खुशी, मेरी अर्धांगिनी, जसप्रीत.’’
सब आश्चर्यचकित रह गए. कुछ देर तक उन दोनों को अपलक निहारने के बाद दीपेश उठ कर खड़ा हो गया और उस को देख सभी जसप्रीत के सम्मान में खड़े हो गए.
जसप्रीत ने अपना टेढ़ा हाथ उठा कर सब को बैठने का इशारा किया और अपने होंठों को धीरे से फैलाते हुए मुसकरा दी.
प्रशांत सर बोलने लगे, ‘‘अपनी पीएचडी के दौरान ही जब मुझे जसप्रीत के विषय में पता लगा तो मैं ने झट से विवाह का निर्णय ले लिया. दबी जबान में मम्मीपापा ने विरोध जरूर किया पर वे समझ गए थे कि अब मैं नहीं रुकने वाला. मैं नहीं छोड़ सकता था जसप्रीत को उस हाल में.’’
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‘‘इन्होंने बहुत इ...इ...इलाज करवाया मेरा. उस के बा...बाद ही थो...थोड़े हाथपैर चल...चलने लगे मेरे.’’ जसप्रीत अपनी बात रुकरुक कर कह पा रही थी.
‘‘आज जसप्रीत ने मुझ से कहा कि मैं अपनी डायरी आप सब को पढ़ने को दे दूं, इन का कहना था कि तभी बच्चे जान सकेंगे कि हम इमरान और स्वाति की भावनाएं क्यों बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं,’’ प्रशांत सर ने बताया.