मेरा मन घृणा और दुख से भर उठा. मैं किसी तरह खुद को संभालते हुए अखबार को कुरसी पर ही रख कर, धीरेधीरे उठा और अपने कमरे में जा कर फिर बिस्तर पर लुढ़क गया. ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मेरे अंदर थोड़ी सी भी जिजीविषा शेष न हो, जैसे मैं दुनिया का सब से दीन आदमी हूं, आंखों से अपनेआप आंसू छलके जा रहे थे.
सामने टेबल पर वही तसवीर थी. जिस में नीतू अब भी मेरी ओर देख कर मुसकरा रही थी, जैसे मेरे जज्बातों से मेरे दिल के दर्द से, उसे कोईर् लेनादेना न हो. जी में आया तसवीर को उठा कर खिड़की से बाहर फेंक दूं कि तभी मां चाय ले कर आ गईं, ‘’अरे, तू फिर सो रहा है क्या? अभी तो पेपर पढ़ रहा था.‘’
मैं ने झटपट अपने चेहरे पर हाथ रख कर पलकों पर उंगलियां फिराते हुए अपने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘’नहीं, सिर थोड़ा भारी लग रहा है.‘’
‘‘रात को देर से सोया होगा. पता नहीं रातरात भर जाग कर क्या लिखता रहता है? ले, चाय पी ले, इस से थोड़ी राहत मिलेगी,‘‘ चाय का कप हाथ में थमा कर
मेरे माथे पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए मां ने कहा, ‘‘तेल ला कर थोड़ी मालिश कर देती हूं.’
‘‘नहीं ठीक है, मां, वैसा दर्द नहीं है. शायद देर से सोया था. इसलिए ऐसा लग रहा है,‘‘ मैं ने फिर बात बना कर कहा.
मां जब कमरे से निकल गईं तो मैं किसी तरह अपनेआप को समझाने की कोशिश करने लगा. पर दिल में उठ रही टीस, जैसे बढ़ती ही जा रही थी. मन कह रहा था, जा कर एक बार उस बेवफा से मिल आओ. आखिर उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? क्या वह इंतजार नहीं कर सकती थी? उन वादों, कसमों को वह कैसे भूल गई, जो हम ने स्कूल से विदाई की उस आखिरी घड़ी में, एकदूसरे के सामने खाई थीं.
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