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‘भाभी, अगर आपके ऐसे ही विचार हैं तो क्यों यहाँ इसे लेकर डाक्टरी की परीक्षा दिलवाने लाई, अरे, कोई भी लड़का देखकर बाँध देती उससे...वह इसे चाहे जैसे भी रखता....’ मन कड़ा करके मनीषा ने कहा था .

भाभी कुछ बोल नहीं पाई थीं पर उस दिन के बाद से सुकन्या उसके और करीब आ गई थी, कोई भी परेशानी होती, उससे सलाह लेती . बाद में उसने सुकन्या को समझाते हुए कहा था,‘ बेटा, औरत का चरित्र एक ऐसा शीशा है जिस पर लगी जरा सी किरच पूरी जिंदगी को बदरंग कर देती है और फिर तेरी माँ तो गाँव की भोली-भाली औरत है, दुनिया की चकाचौंध से दूर...अपने आँचल के साये में फूल की तरह सहेज कर तुझे पाला है, तभी तो जरा से झटके से वह विचलित हो उठी हैं.... तू उसे समझने की कोशिश कर .’

भाभी सुकन्या को लेकर चली गईं . दादी ने जब सुकन्या के विवाह का प्रस्ताव रखा तो वह मना नहीं कर पाईं . सुकन्या अपनी लड़ाई अपने आप लड़ रही थी . इसी बीच रिजल्ट निकल आया . सुकन्या का नाम मेडिकल के सफल प्रतियोगी की लिस्ट में पाकर दादाजी बेहद प्रसन्न हुये . दादी के विरोध के बावजूद उन्होंने उन्हें यह कर मना लिया,‘ जरा सोचो हमारी सुकन्या न केवल हमारे घर वरन् हमारे गाँव की पहली डाक्टर होगी . मेरा सीना तो गर्व से चौड़ा हो गया है .’

पिताजी के मन में द्वन्द था तो सिर्फ इतना कि सुकन्या शहर में अकेली कैसे रहेगी ? तब उसने कहा था,‘ सुकन्या गैर नहीं, मेरी भी बेटी है, अगर आप सबको आपत्ति है तो उसकी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ  .’

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