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किशोर और मुरली चुपचाप खड़े थे और बोलने वाले मुंह केवल गांव के लोगों के थे. सभी कुछ न कुछ कहे जा रहे थे.

“देखो अब भी कैसे खड़ी है, बोल किसकिस के साथ चक्कर चल रो है तेरा,” मुखिया वृद्ध ने कहा.

“मैं सुमन के सिर पर हाथ रख के बोलरी हूं मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नहीं है,” आखिर में सुबकते हुए ललिता ने कहा.

“इतना सब कर के भी मुंह खोलने की हिम्मत है इस की,” एक औरत ने कहा.

“मुंह दिखाने लायक न छोड़ा खानदान को,” यह किशोर की दूर के रिश्ते की बुआ थी जिस ने ललिता के कंधे पर जोर से प्रहार करते हुए कहा था. यह देख गांव की एकदो और औरतें भी ललिता को गाली देने लगीं और कभी उस की पीठ पर कोई जोर से मारती तो कोई सिर पर.

अपनी मम्मी के साथ यह सब होता देख सुमन जोरजोर से रोने लगी. ललिता ने सुमन का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनों का ही यहां कोई नहीं है.

“धक्के मार के गांव से निकालो इस औरत को, हमारी संस्कृति को मजाक बनाके रख दियो. गांव की बाकी छोरियां क्या सीखेंगी इस से, जातबिरादरी में किसी को मुंह ना दिखा सकते अब,” मुखिया ने कहा.

“मुझे इतना ज्ञान देने की बजाए आप इन को कुछ क्यों नहीं कहते? इन में कमी है पूछो इन से?” ललिता ने चिल्ला कर कहा.

“यह क्या बके जा रही है?” आसपास मौजूद सभी लोग चौंक कर कहने लगे.

“क्या बके जा रही हूं? शादी के बाद कोई सुख नहीं मिला इन से तो मेरे जो मन में आया मैं ने किया, इन से कोई कुछ क्यूं नहीं पूछा रहा है,” ललिता ने कहा तो किशोर वहां से उठ कर जाने लगा. किशोर के मुंह पर शर्मिंदगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

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