शालू बड़ी सावधानी से घर में दाखिल हुई. इधरउधर देख कर वह दबे पैर अपने कमरे के तरफ बढ़ी, लेकिन दरवाजे पर पहुंचने से पहले ही दीपा बूआ ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया.
दीपा बूआ तकरीबन धकेलते हुए दीपा को कमरे के अंदर ले गईं और अंदर जाते ही सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘कहां गई थी? इतनी देर कहां थी? तू आज फिर रमेश से मिलने गई थी?’’
‘‘हां, मैं रमेश से मिलने गई थी,’’ शालू खाऐखोए अंदाज में बोली.
दीपा बूआ शालू की हालत और उस के हावभाव देख कर परेशान हो कर समझाने लगीं, ‘‘देख शालू, तू रमेश के प्यार में पागल हो गई है, लेकिन तेरा इस तरह उस से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. अगर कुछ ऊंचनीच हो गई तो गांव में भैया की क्या इज्जत रह जाएगी...’’
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दीपा बूआ काफी देर तक समझाने की नाकाम कोशिश करती रहीं लेकिन शालू तो जैसे रमेश के प्यार में बावली हो गई थी. उस को ऊंचनीच, सहीगलत कुछ नजर नहीं आ रहा था.
शालू के पिता रामबरन गांव के रसूखदार किसान माने जाते थे. 2 जोड़ी बैल, 4-5 भैंसें, ट्रैक्टरट्रौली, पचासों बीघा खेत, सभी सुखसुविधाओं से भरा बड़ा सा पक्का मकान. सबकुछ उन्होंने अपनी मेहनत से बनाया था.
रामबरन के घर में उन की पत्नी, एक बेटा और बेटी थी. पति से अनबन होने की वजह से उन की छोटी बहन भी उन के साथ ही रहती थी. बड़ा बेटा अजय अभी पढ़ रहा था जबकि बेटी शालू सिर्फ 8वीं जमात तक पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ कर घर पर मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थी.