कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक-उषा किरण सोनी

शायद यहां भी उस रचनाकार ने मेरी व राज की जीवनी में एक सी पंक्ति लिख दी थी. हम दोनों के पति अपनेअपने परिवार की इकलौती संतान थे. मधुयामिनी के बाद मांबाबूजी के अकेले रह जाने के भय से हम मधुमास मनाने कहीं बाहर नहीं गए. मैं और मदन, मदन और मैं, दोनों आत्मसात हो गए एकदूसरे में.

एक सप्ताह बाद जब भैया मुझे लेने आए तो बाबूजी ने कहा, ‘मदन की डेढ़ महीने की छुट्टी बाकी है इसलिए बहू को यहीं रहने दो. मदन के जाने के बाद ले जाना.’ फोन पर पापा ने भी अपनी सहमति दे दी. भैया ने वापस जाते समय राज के 2 पत्र मुझे दिए जो मेरी गैर मौजूदगी में आए थे.

बिना संबोधन के राज ने लिखा था, ‘रीता, राजेंद्र आगे की पढ़ाई करने 2 साल के लिए विदेश जा रहे हैं. मैं तो 2 दिन नहीं रह सकती राजेंद्र के बिना ये 2 साल कैसे बीतेंगे? मैं राजेंद्र में इतनी खो गई थी कि तुझे पत्र लिखने की याद ही न रही. मेरा तो सारा संसार ही राजेंद्रमय हो गया है. सच, रीता, तू शादी मत करना. जानती है, आदमी शादी के बाद पागल हो जाता है, मेरी तरह.’

मैं पढ़ कर हंसी. कैसा संयोग था कि उस की शादी के दिन मेरे मदन मुझे देखने आए थे और मेरी शादी के समय उसे ससुराल में रहने के कारण सूचना न मिल पाई थी क्योंकि कार्ड मैं ने उस की मां के घर भेजा था.

मैं ने मदन को राज के पत्र दिखा कर अपनी गहरी दोस्ती की बात बताई. पतियों संबंधी कल्पनाओं और शरारतों को सुन मदन हंसे बिना न रह सके. बोले, ‘सच ही तो है कि शादी के बाद आदमी पागल हो जाता है,’ और उन्होंने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया…मैं राज को पत्र लिखना भूल गई.

मुट्ठी में बंधी रेत की तरह मदन की छुट्टियों के दिन खिसक गए. उन के जाने का समय निकट जान मैं घबरा उठी. क्या यह इंद्रजाल सा मोहक जीवन मेरी मुट्ठी से फिसल जाएगा. नहीं, मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी, पर क्या सोचने से ऐसा हो पाया है. क्या सचमुच मदन मुझे यहां छोड़ कर चले जाएंगे? पता नहीं मन क्यों दुश्ंिचताओं से घिरा जा रहा है. पापा मुझे लेने और मदन से मिलने आ गए थे.

ये भी पढ़ें- मोहभंग : सीमा का अपने मायके से क्यों मोहभंग हुआ ?

मदन सामान बांधे खड़े थे और मेरा रोरो कर बुरा हाल था. वे भीतर आ कर बोले, ‘रीतू, बस, तुम घर जा कर अपनी मां से मिल आओ तब तक मैं क्वार्टर का इंतजाम कर लूंगा और तुम्हें ले जाऊंगा फिर हम होंगे और हमारी बसंत ऋतु.’

आखिर मदन चले गए और उसी दिन शाम को मैं पापा के साथ उत्तरकाशी चली गई. मदन से दूर मन उदास और अतृप्त था, पर मां के प्यार व भैया और पापा के दुलार से तपन को थोड़ी शांति मिली.

मां मुझे सुखी देख प्रसन्न थीं. मुझे हर रोज मदन का प्यार में भीगा एक पत्र मिलता. मैं खुश हो उठती और तुरंत उत्तर देती. 3-4 दिनों बाद मैं ने मां से कहा, ‘आज मैं राज को पत्र लिखूंगी, इधर उस का कोई समाचार नहीं मिला.’

मां उदास हो कर बोलीं, ‘बेटी, मैं ने तुम्हें पत्र में नहीं लिखा. दरअसल, राज के साथ अनहोनी हो गई. राजेंद्र जिस हवाईजहाज से विदेश जा रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया और राजेंद्र नहीं रहे. राजेंद्र की मौत का समाचार सुनते ही राज की हृदयगति रुक गई और उस ने भी शरीर छोड़ दिया. वह सती थी.

‘क्या?’ मेरे मुंह से निकला और मैं चेतनाशून्य हो गिर पड़ी. मां ने घबरा कर भैया को डाक्टर बुलाने भेज दिया.

आंखें खुलने पर मैं ने पाया कि मां के चेहरे पर गंभीरता की जगह मुसकान थी. वह मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘बेटी, खुद को संभालो. जीवन में ऐसे क्षण तो आते ही हैं. उस का दुख न करो, वह सती थी. अपना ध्यान रखो. अब तुम्हारा उदास रहना ठीक नहीं. तुम अब मां और मैं नानी बनने वाली हूं.’

ये भी पढ़ें- एक रिश्ता ऐसा भी

मैं पुन: चौंक पड़ी. मैं मां बनने वाली हूं? इस एक शब्द ‘मां’ ने मुझे राज के दुख से उबार लिया. पलकें शर्म से झुक गईं और आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया.

पिता बनने की सूचना पा मदन बौरा से गए थे. लगभग हर रोज उन का पत्र आता. इस पत्र में उन्होंने लिखा था, ‘मैं अति शीघ्र आ रहा हूं, तुम्हें यहां ला कर इस समय का हर पल तुम्हारे साथ जीना चाहता हूं.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...