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अगले हफ्ते ऐनी अपना सामान ला पवन के साथ रहने आ गई. अंधा क्या मांगे, दो आंखें. बिखरा सामान ठिकाने लग गया. सुबह का नाश्ता दोनों इकट्ठे बैठ कर खाते. शनिवार पब जाने और बाहर खाना खा कर आने का रूटीन बन गया. इतवार घर में रह मस्ती होती और अब पवन ने भी कुछकुछ पकाना सीख लिया था. शाम की कौफी बनाना अब उस की जिम्मेदारी थी.

अब पवन मां को स्वयं फोन कर थोड़ी सी बातें कर लेता, लेकिन अभी तक ऐनी की कोई चर्चा नहीं की. मां की बारबार शादी की बात वह यह कह कर टाल जाता कि अभी वह और अच्छी नौकरी की तलाश में है. मां उसे कुछ समय के लिए वापस घर बुला रही थी. पिता की बरसी करनी थी और फिर एक महीने बाद नयन की संजना से शादी थी. रमा की भाभी उस के पास रहने व सहारा देने आ गईं. कहा जाता है कि सब काम समय पर होते चलते हैं. बस, जाने वाला ही चला जाता है. सब के प्रयत्न से शादी अच्छी हो गई. पर रमा बारबार होती गीली आंखों के आंसुओं को अंदर ही रोके रही, शगुन का काम था.

कुछ दिन मायके और ससुराल रह संजना नयन के साथ असम चली गई. नयन मां को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था पर मां ने सब यादों को समेटे अपने घर में ही रहना तय किया. संजना कभीकभी फोन कर देवर का हाल जानती रहती थी. उधर, ऐनी व पवन के बीच सब ठीक चल रहा था, कभी छुट्टियां ले दोनों कहीं घूम आते. देखतेदेखते 10 महीने बीत गए. मां ने इस बार पवन को खुशखबरी देते संजना के गर्भवती होने की बात बताई.

संजना के मायके वाले उसे डिलीवरी के लिए अपने पास रखना चाहते थे. पर नयन यह कह कर कि उसे यहां हर तरह का आराम है और फिर मां भी गोदभराई की रस्म के लिए आएंगी, तो रुकेंगी, उस का जाना टाल दिया. सब ठीक रहा और संजना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. सब ओर से बधाई का आदानप्रदान हुआ. चाचा पवन को नई पदवी की विशेष बधाई मिली. बच्चे के 4 महीने के होते ही मां असम से लौट आईं, नयन स्वयं छोड़ने आया.

‘यह कैसे हो गया, कहां गलती हुई, क्यों नहीं ध्यान दिया?’ ऐनी यह सब सोचते हुए परेशान थी. वह प्रैग्नैंट थी. ‘नहीं, वह झंझट नहीं ले सकती, उसे नौकरी करनी है.’ सब आगापीछा सोचते हुए पवन से अबौर्शन की जिद करने लगी. पवन थोड़ा तो परेशान हुआ पर तसल्ली दी कि वह पूरी तरह से सहयोग करेगा ऐनी व बच्चे का ध्यान रखने में. ऐनी की मां अब अपनी छोटी बेटी के पास स्कौटलैंड में रहती थी. समय पर मां को बुलाने पर बात अटकी तो पवन ने कहा, ‘देखेंगे.’ पहले वाले लड़के ने मां के कारण ही ऐनी से किनारा किया था और अब वह वही मुसीबत मोल ले ले, नहीं. ऐनी को यह मंजूर न था.

अपनी गर्भावस्था के दौरान ऐनी स्वस्थ व चुस्त रही और काम पर जाती रही. बस, डिलीवरी होने से पहले 3 दिन ही घर पर रही थी और 9 महीने पूरे होते ही उस ने सुंदर, स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. उस के गोल्डन, ब्राउन, घुंघराले बालों को देखते ही चहकी, ‘‘यह तो अपने नाना जैसा है.’’ अपने पिता की याद में उस की आंखें भर आईं. वे दोनों बहनें छोटी ही थीं जब उस के पिता का कार दुर्घटना में निधन हो गया था और पिता के काम की जगह ही मां को काम दे दिया गया था. ऐनी को नौकरी से 3 महीने की छुट्टी मिल गई और पवन भी कोशिश कर उस की हर संभव सहायता करता. छोटे बेबी को पालना आसान नहीं. मां के फोन आते रहते. पर इस बार पवन ने पक्का इरादा कर ऐनी के बारे में बता दिया, लेकिन बच्चे का जिक्र नहीं किया.

मां यह सुन सन्नाटे में आ, पूछना भूल गई कि कौन है, कब यह सब हुआ? पवन हैलोहैलो ही कहता रह गया, फोनलाइन कट गई. बिना शादी एकसाथ रहना, बच्चे होना और फिर साथ रहने की गारंटी, क्या कहा जा सकता है. पवन दोबारा फोन करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया. लेकिन, भाभी का फोन आ गया. ‘‘मां अस्पताल में हैं. उन की अचानक तबीयत खराब होने की खबर सुनते ही वे लोग फौरन मां के पास पहुंच गए. अभी नयन मां के पास अस्पताल में हैं.’’

भाभी ने उस की शादी के बारे में पूछा तो पवन ने रोंआसा हो बताया कि यह अचानक किया फैसला है और झूठ का सहारा ले यह कह दिया कि यहां सैटल होने के लिए यहां की लड़की से शादी करने से मदद मिल जाती है. पवन का मन परेशान हुआ कि बच्चे के बारे में जानेंगे तो क्या सोचेंगे. भाभी ने कहा कि मां उस के लिए यहां लड़कियां देख रही थीं. अचानक खबर से उन्हें काफी धक्का लगा है. पर अब क्या हो सकता है. तसल्ली दी कि जब तक मां पूरी तरह ठीक नहीं हो जाएंगी, वह यहां रह उन की देखभाल करेगी. नयन भी आतेजाते रहेंगे. बाद में वे मां को अपने साथ असम ले जाएंगे.

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पिछली बार जब रमा असम गई थी तो कुछ दिनों के बाद ही कहना शुरू कर दिया था कि यहां बहुत अकेलापन है. वह वापस जाना चाहती है. नयन ने समझाने की बहुत कोशिश भी की थी कि आप की बहू, बेटा, पोता हैं, यहां अकेलापन कैसा और फिर यह भी आप का घर है. पर नहीं, वह जल्दी लौट आई थी. इधर, ऐनी बच्चे क्रिस को अकेले संभालने में परेशान हो जाती थी. पवन रात में बच्चे के लिए कई बार जागता था. अब ऐनी के काम पर वापस जाने का समय हुआ. क्रिस को घर से दूर एक डेकेयर में छोड़ना तय हुआ. क्रिस को सुबह पवन छोड़ आता था, शाम को ऐनी ले आती थी. आसान नहीं था यह सब. अब आएदिन दोनों में किसी न किसी बात पर बहस होने लगी. बच्चे के कारण दोनों का बाहर घूमनाफिरना, मौजमस्ती कम हो गई थी. ऐनी जैसी मौजमस्ती में रहने वाली के लिए यह सब बदलाव मुश्किल सा हो गया था जबकि पवन ने बहुत सी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी.

अचानक एक दिन ऐनी को पता नहीं क्या सूझी, जो सीधा ही पवन से कह दिया कि वह नौकरी छोड़ बेबी क्रिस को ले अपनी मांबहन के पास स्कौटलैंड चली जाएगी. पवन हैरत में था कि अपनी ओर से वह और क्या करे कि ऐनी अपना इरादा बदल ले. अभी इस बात को एक सप्ताह ही बीता था कि पवन को डेकेयर से फोन पर बताया गया कि मिस ऐनी का उन्हें फोन आया था कि आज आप क्रिस को लेने आएं, वे नहीं आ पाएंगी. ‘‘ठीक है,’’ कह कर पवन ने सोचा कि ऐनी यह बात सीधे उस से भी कह सकती थी. फिर यह सोच कर मन को तसल्ली दी कि वह आजकल बहुत परेशान व नाराज सी रहती है. इसलिए शायद उस से नहीं कहा.

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