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राइटर- अंजुला श्रीवास्तव

अपने को संभाल मैं कैब का इंतजार करने लगी. अचानक अरुण मेरे पास आया और बोला, ‘‘सुनिए, मैं यहां के बारे में कुछ नहीं जानता. आप को अगर कोई परेशानी न हो तो मु झे यहां के किसी होटल तक पहुंचा दीजिए.’’

मैं देख रही थी कि अरुण यह सबकुछ कहते हुए हिचकिचा रहा था. पहले की तरह उस के स्वर में न अपनापन था, न बेफिक्री.

मैं उस के साथ ही कैब में बैठ गई. फिर मैं सोचने लगी कि अरुण को मैं अपने घर ले चलूं तो शायद उसे दोबारा पा सकूं. लेकिन... लेकिन अगर अरुण ने मना कर दिया तो इस ‘तो’ ने सारी बात पर फुलस्टौप लगा दिया.

लेकिन न जाने कैसे मेरी दबी इच्छा बाहर निकल ही आई. मैं कह बैठी, ‘‘आप को परेशानी न हो तो मेरे घर पर रुक जाइए.’’

‘‘तुम्हारे घर,’’ अरुण ने आश्चर्यचकित हो कर कहा. उस की स्वीकृति पा कर मैं ने कैब वाले को अपने घर की तरफ चलने  का इशारा किया. मेरे दिल से एक बो झ सा उतर गया. 15 मिनट में ही कैब मेरे घर तक पहुंच गई. अपने कमरे की अस्तव्यस्त हालत के कारण मु झे अरुण के सामने शर्म आने लगी. अरुण कमरे का निरीक्षण कर रहा था, बोला, ‘‘कमरा तो तुम्हें अच्छा मिल गया है.’’

‘‘हां, 5,000 रुपए किराया है इस का. इस से कम में तो मिल ही नहीं सकता,’’ मैं कह गई.

तरोताजा होने के लिए अरुण बाथरूम में चला गया. इतनी देर में मैं ने सब चीजें करीने से लगा दीं. नाश्ते का इंतजाम भी कर लिया. अरुण को क्याक्या पसंद है, यह सब मु झे अभी तक याद था. उसे नाश्ता करा कर मैं भी नहाने चली गई.

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