डाक्टर के पास गए तो उन्होंने बताया, ‘‘कुछ सालों से दीपक के फेफड़ों में संक्रमण है जो उसे गैराज में काम करते हुए धूल व धुएं के कारण हो गया था. पहले भी उस का इलाज यहां होता रहा और उसे भरती होने के लिए कहा गया. पर उस ने कहा था, ‘मेरे ऊपर कुछ महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है और मेरी दोस्त की शादी भी है.’ यह कह कर उस ने सभी जरूरी दवाइयां ली और चला गया. फिर बाद में आया ही नहीं. अभी जब वह यहां आया तो उस की स्थिति बेहद गंभीर थी. अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता.’’
अवनि ने नीरज को देखा फिर डाक्टर से कहा, ‘‘उस के इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, डाक्टर साहब.’’
‘‘देखिए, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं. सबकुछ हमारे हाथ में नहीं है. और मैं आप को यह भी बता दूं कि उस का इलाज लंबा है पर 90 फीसदी चांसेज हैं कि वह ठीक हो जाए. पर कुछ हमारी भी मजबूरियां हैं.’’ डाक्टर ने कहा.
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अवनि ने पूछा, ‘‘कैसी मजबूरी?’’ तो डाक्टर ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘कुछ दवाइयां हैं जो यहां नहीं मिलतीं, उन्हें और्डर दे कर मुंबई या फिर चैन्नई से मंगवाना पड़ता है और कंपनी को कुछ ऐडवांस भी देना पड़ता है. दीपक ने जो रकम यहां जमा की थी वह सब खत्म हो गई. उस के औफिस से भी एक बार 50 हजार रुपए का चैक आया था. वह भी दवाई और अस्पताल के चार्ज में लग गया. उसे बाहर तो नहीं कर सकते, पर कुछ ही दिनों में हम उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट करने वाले हैं.’’
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