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‘‘भैया, वह आप के साथ इतनी बदतमीजी से बात कर रहा था...क्या आप को बुरा नहीं लगा? आप इतना सब सह कैसे जाते हैं. औकात क्या है उस की? न पढ़ाईलिखाई न हाथ में कोई काम करने का हुनर. मांबाप की बिगड़ी औलाद...और क्या है वह?’’

‘‘तुम मानते हो न कि वह कुछ नहीं है.’’

भैया के प्रश्न पर चुप हो गया मैं. भैया उस की गाड़ी के नीचे आतेआते बड़ी मुश्किल से बचे थे. क्षमा मांगना तो दूर की बात बाहर निकल कर इतनी बकवास कर गया था. न उस ने भैया की उम्र का खयाल किया था और न ही यह सोचा था कि उस की वजह से भैया को कोई चोट आ जाती.

‘‘ऐसा इनसान जो किसी लायक ही नहीं है वह जो पहले से ही बेचारा है. अपने परिवार के अनुचित लाड़प्यार का मारा, ओछे और गंदे संस्कारों का मारा, जिस का भविष्य अंधे कुएं के सिवा कुछ नहीं, उस बदनसीब पर मैं क्यों अपना गुस्सा अपनी कीमती ऊर्जा जाया करूं? अपने व्यवहार से उस ने अपने चरित्र का ही प्रदर्शन किया है, जाने दो न उसे.’’

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अपनी किताबें संभालतेसंभालते सहसा रुक गए भैया, ‘‘लगता है ऐनक टूट गई है. आज इसे भी ठीक कराना पड़ेगा.’’

‘‘चलो, अच्छा हुआ, सस्ते में छूट गया मैं,’’ सोम भैया बोले, ‘‘मेरी ही टांग टूट जाती तो 3 हफ्ते बिस्तर पर लेटना पड़ता. मुझ पर आई मुसीबत मेरी ऐनक ने अपने सिर पर ले ली.’’

‘‘मैं जा कर उस के पिता से बात करूंगा.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं किसी से कुछ भी बात करने की. बौबी की जो चाल है वही उस की सब से बड़ी सजा बन जाने वाली है. जो लोग जीवन में बहुत तेज चलना चाहते हैं वे हर जगह जल्दी ही पहुंचते हैं...उस पार भी.’’

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