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समिधा का पहले शरमाना, फिर मुसकराना, फिर साथ में कौफी पीना और फिर बाइक पर लिफ्ट... चूंकि दोनों की पृष्ठभूमि लगभग एक सी थी, अत: प्यार परवान चढ़ने लगा. औफिस में दोनों के बारे में चर्चा होने लगी थी. कुछ दिन बाद अचानक समिधा ने औफिस आना बंद कर दिया, तो सोम परेशान हो उठा. उस ने समिधा के घर का पता लगाया और बेचैन हालत में उस के घर पहुंच गया. वह एक कालोनी में अपनी बूआ के साथ रहती थी. उस के मांबाप बचपन में ही गुजर गए थे. बूआ ने ही उसे पढ़ाया लिखाया था. बूआ एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थीं. समिधा और बूआ दोनों एकदूसरे का सहारा थीं. मेवा मिठाई, पकवान तो उन के पास नहीं था, परंतु दाल रोटी अच्छी तरह से चल रही थी.

सोम को देखते ही समिधा की बूआ सरिताजी की त्योरियां चढ़ गई थीं. छूटते ही उन्होंने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी कि कहां रहते हो? घर पर कौनकौन है? समिधा से क्यों मिलने आए हो? तुम्हारी तनख्वाह कितनी है? आदिआदि.

सोम के माथे पर पसीना आ गया था. वह उस घड़ी को कोसने लगा था, जब उस ने समिधा के घर की ओर रुख किया था. परंतु वह अपनी अम्मां के ऐसे तेवरों से वाकिफ था, इसलिए उस ने धैर्यपूर्वक उन्हें उत्तर दिए.

जब सरिताजी थोड़ी आश्वस्त हुईं तो बोलीं, ‘‘इसे तो 1 हफ्ते से बुखार आ रहा था. इसीलिए औफिस नहीं जा रही थी. अब बुखार ठीक हो गया है, इसलिए कल से यह औफिस जाएगी,’’ फिर चेतावनी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘मुझे लड़के लड़कियों की दोस्ती पसंद नहीं है. लड़के कुछ दिन तो लड़कियों से प्यार का नाटक करते हैं, फिर जब दूसरी पर दिल आ जाता है तो पहले वाली की ओर मुड़ कर भी नहीं देखते.’’

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