घर के मुख्यद्वार की घंटी बजने से पहले ही जब पत्नी ने मुसकरा कर दरवाजा खोला तो हम उन का प्रसन्न मुख देख कर हैरान रह गए. उस के बाद जब वह स्नेह से भीग कर हमारा ब्रीफकेस भी हाथ में ले कर भीतर जाने को मुड़ीं तो हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा. यह परिवर्तन जरूर किसी खास बात का लक्षण है वरना उन का इतना मधुर रूप देखे तो हमें बरसों बीत गए थे. यह परिवर्तन ठीक उसी प्रकार था जैसे सूखे पेड़ पर अचानक कोई सुंदर फूल खिल उठता है.

हाथमुंह धोने से ले कर चाय का गरम प्याला पकड़ाने तक पत्नी का मुख कमल के समान खिला रहा. उन की हर बात में प्यार भरा अधिकार था. आखिर जिस बात को जानने की हमें जिज्ञासा हो रही थी वह बडे़ बेटे आशीष ने खेलकूद से वापस लौटते ही धूल सने चेहरे से चहक कर हमें सुनाई, ‘‘पिताजी, क्या आप को मालूम है कि मां भी अब दफ्तर जाया करेंगी?’’

‘‘क्या? कहां जाया करेंगी?’’ हम अवाक् से बेटे की तरफ देखते रह गए.

‘‘हां, पिताजी, मां अब सुबह 8 बजे ही हमारे साथ दफ्तर के लिए जाया करेंगी, तभी समय से पहुंचेंगी न?’’

‘‘अरे,’’ हम विस्फारित नेत्रों से आशीष के मुख की तरफ देखे जा रहे थे. आखिर रसोई में काम करती पत्नी के पास जा कर बोले, ‘‘सुनो, यह आशीष क्या कह रहा है?’’

‘‘क्यों, क्या कह रहा है?’’ वह सख्ती से हमारी तरफ पलटीं.

पत्नी की सख्त मुखमुद्रा देख कर हम हड़बड़ा गए. हकलाहट में हमारे मुंह से निकला, ‘‘यही कि तुम नौकरी पर जाया करोगी.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...