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लेखिका- नीलमणि शर्मा

तनु ने हमेशा झूठे अहम में डूबे प्रणव की भावनाओं का सम्मान किया. लेकिन बदले में प्रणव ने उसे दिया कदमकदम पर अपमान का कटु दंश. और एक दिन तो हद ही हो गई, जब प्रणव ने जीवन भर के इस रिश्ते को ताक पर रख दिया. उम्र भर पति के ताने सहन करती आई तनु क्या प्रणव को अपने अस्तित्व का एहसास करा पाई?

कालिज पहुंचते ही तनु ने आज सब से पहले स्टाफ क्वार्टर के लिए आवेदन किया. इतने साल हो गए उसे कालिज में पढ़ाते हुए, चाहती तो कभी का क्वार्टर ले सकती थी पर इतना बड़ा बंगला छोड़ कर यों स्टाफ क्वार्टर में रहने की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. फिर प्रणव को भी तनु के घर आ कर रहना पसंद नहीं था. उन का अभिमान आहत होता था. उन्हें लगता कि वहां वह  ‘मिस्टर तनुश्री राय’ बन कर ही रह जाएंगे. और यह बात उन्हें कतई मंजूर न थी.

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आज सुबह ही प्रणव ने उसे अपने घर से निकल जाने को कह दिया जबकि तनु को इस घर में 30 साल गुजर चुके हैं. कहने को तो प्रणव ने उसे सबकुछ दिया है, बढि़या सा घर, 2 बच्चे, जमाने की हर सुखसुविधा…लेकिन नहीं दिया तो बस, आत्मसम्मान से जीने का हक. हर अच्छी बात का श्रेय खुद लेना, तनु के हर काम में मीनमेख निकालना और बातबात पर उस को  ‘मिडिल क्लास मानसिकता’ का ताना देना, यही तो किया है प्रणव ने शुरू से अब तक. पलंग पर लेटेलेटे तनु अपने ही जीवन से जुड़ी घटनाओं का तानाबाना बुनने लगी.

इतने वर्षों से तनु को लगने लगा था कि उसे यह सब सहने की आदत सी हो गई है पर आज सुबह उस का धैर्य जवाब दे गया. जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी प्रणव का कहनासुनना बढ़ता जा रहा था और तनु की सहनशीलता खत्म होती जा रही थी.

तनु जानती है कि अमेरिका में रह रहे बेटे के विवाह कर लेने की खबर प्रणव बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि उन के अहम को चोट पहुंची है. अब तक हर बात का फैसला लेने का एकाधिकार उस से छिन जो गया था. प्रणव की नजरों में इस के  लिए तनु ही दोषी है. बच्चों को अच्छे संस्कार जो नहीं दे पाई है…यही तो कहते हैं प्रणव बच्चों की हर गलती या जिद पर.

जबकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने का कोई अधिकार उन्होंने तनु को नहीं दिया. यहां तक कि उस के गर्भ के दौरान किस डाक्टर से चैकअप कराना है, क्या खाना है, कितना खाना है आदि बातों में भी अपनी ही मर्जी चलाता. शुरू में तो तनु को यह बात अच्छी लगी थी कि कितना केयरिंग हसबैंड मिला है लेकिन धीरेधीरे पता चला यह केयर नहीं, अपितु स्टेटस का सवाल था.

कितना चाहा था तनु ने कि बेटी कला के क्षेत्र में नाम कमाए पर उसे डाक्टर बनाना पड़ा, क्योंकि प्रणव यही चाहते थे. बेटे को आई.ए.एस. बनाने की चाह भी तनु के मन में धरी की धरी रह गई और वह प्रणव के आदेशानुसार वैज्ञानिक ही बना, जो आजकल नासा में कार्यरत है.

ऐसा नहीं कि बच्चों की सफलता से तनु खुश नहीं है या बच्चे अपने प्राप्यों से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन यह भी सत्य है कि प्रणव इस सब से इसलिए संतुष्ट हैं कि बच्चों को इन क्षेत्रों में भेजने से वह और तनु आज सोसाइटी में सब से अलग नजर आ रहे हैं.

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पूरी जिंदगी सबकुछ अपनी इच्छा और पसंद को ही सर्वश्रेष्ठ मानने की आदत होने के कारण बेटे की शादी प्रणव को अपनी हार प्रतीत हो रही है. यही हार गुस्से के रूप में पिछले एक सप्ताह से किसी न किसी कारण तनु पर निकल रही है. प्रणव को वैसे भी गुस्सा करने का कोई न कोई कारण सदा से मिलता ही रहा है.

प्रणव यह क्यों नहीं समझते कि बेटे के इस तरह विवाह कर लेने से तनु को भी तो दुख हुआ होगा. पर उन्हें उस की खुशी या दुख से कब सरोकार रहा है. जब बेटे का फोन आया था तो तनु ने कहा भी था,  ‘खुशी है कि तुम्हारी शादी होगी, लेकिन तुम अगर हमें अपनी पसंद बताते तो हम यहीं बुला कर तुम्हारी शादी करवा देते. सभी लोगों को दावत देते…वहां बहू को कैसा लगेगा, जब घर पर नई बहू का स्वागत करने वाला कोई भी नहीं होगा.’

‘क्या मौम आप भी, कोई कैसे नहीं होगा, दीदी और जीजाजी आ रहे हैं न. आप को तो पता है कि अपनी पसंद बताने पर पापा कभी नहीं होने देते यह शादी. दीदी की बार का याद नहीं है आप को. डा. सोमेश को तो दीदी ने उस तरह पसंद भी नहीं किया था. बस, पापा ने उन्हें रेस्तरां में साथ बैठे ही तो देखा था. घर में कितने दिनों तक हंगामा रहा था. दीदी ने कितना कहा था कि डा. सोमेश केवल उन के कुलीग हैं पर कभी पापा ने सुनी? उन्होंने आननफानन में कैसे अपने दोस्त के डा. बेटे के साथ शादी करवा दी. यह ठीक है कि  जीजाजी भी एकदम परफेक्ट हैं.

‘सौरी मौम, मेरी शादी के कारण आप को पापा के गुस्से का सामना करना पडे़गा. रीयली मौम, आज मैं महसूस करता हूं कि आप कैसे उन के साथ इतने वर्षों से निभा रही हैं. यू आर ग्रेट मौम…आई सेल्यूट यू…ओ.के., फोन रखता हूं. शादी की फोटो ईमेल कर दूंगा.’

तनु बेटे की इन बातों से सोच में पड़ गई. सच ही तो कहा था उस ने. लेकिन वह गुस्सा एक बार में खत्म नहीं हुआ था. पिछले एक सप्ताह से रोज ही उसे इस स्थिति से दोचार होना पड़ रहा है. सुबह यही तो हुआ था जब प्रणव ने पूछा था, ‘सुना, कल तुम निमिषा के यहां गई थीं.’

‘हां.’

‘मुझे बताया क्यों नहीं.’

‘कल रात आप बहुत लेट आए तो ध्यान नहीं रहा.’

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‘‘ध्यान नहीं रहा’ का क्या मतलब है, फोन कर के बता सकती थीं. कोई काम था वहां?’

‘निमिषा बहुत दिनों से बुला रही थी. कालिज में कल शाम की क्लास थी नहीं, सोचा उस से मिलती चलूं.’

‘तुम्हें मौका मिल गया न मुझे नीचा दिखाने का. तुम्हें शर्म नहीं आई कि बेटे ने ऐसी करतूत की और तुम रिश्तेदारी निभाती फिर रही हो.’

‘निमिषा आप की बहन होने के साथसाथ कालिज के जमाने की मेरी सहेली भी है…और रही बात बेटे की, तो उस ने शादी ही तो की है, गुनाह तो नहीं.’

‘पता है मुझे, तुम्हारी ही शह से बिगड़ा है वह. जब मां बिना पूछे काम करती है तो बेटे को कैसे रोक सकती है. भूल जाती हो तुम कि अभी मैं जिंदा हूं, इस- घर का मालिक हूं.’

‘मैं ने क्या काम किया है आप से बिना पूछे. इस घर में कोई सांस तो ले नहीं सकता बिना आप की अनुमति के…हवा भी आप से इजाजत ले कर यहां प्रवेश करती है…जिंदगी की छोटीछोटी खुशियों को भी जीने नहीं दिया…यह तो मैं ही हूं कि जो यह सब सहन करती रही….’

‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’

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