कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक- संदीप पांडे

पलक  झपकते ही 4 साल बीत गए थे. इंजीनियरिंग की पढ़ाई अच्छे नंबरों से पास कर ली थी. बेफिक्र सा कालेज युग समाप्त हो कर अब रोजगार की चिंता में करवटें ले रहा था.

अभिजीत का अब आगे पढ़ने का मन कतई न था. ठीकठाक सी नौकरी लग जाए, तो घर से रुपएपैसे की निर्भरता से मुक्ति पा जाने का एकमात्र खयाल जेहन में मौजूद था. 90 के दशक का शुरुआती वर्ष देश के साथ उस के जीवन में विकास की बेचैन अंगड़ाई में खोया मचल रहा था. अखबार में वैकेंसी तलाशते, जानकारों से संपर्क बढ़ाते, कहीं भी उल्लास की कमी नहीं थी. शायद अपनी काबिलीयत पर पूरा भरोसा था, इसलिए बीसियों जौब इंटरव्यू या फौर्म भरने के बावजूद 6 महीने बाद भी उस के चेहरे व व्यवहार में किसी तरह अवसाद की लेशमात्र भी  झलक न थी. पिता के उच्च पदस्थ सरकारी नौकर होने से जेब खाली होने का अनुभव कोसों दूर था.

एक दिन पटरी पर चाय की चुस्की लेते अपने से 2 वर्ष पूर्व डिग्री प्राप्त कर चुके कुनाल से मुलाकात हो गई. कालेज में सभी जूनियर उन से खौफ खाते थे पर अब आवाज में उन के काफी नरमी के साथ व्यवहार में ‘2 वर्ष से बेरोजगार’ का बोर्ड साफतौर पर दृष्टिगोचर था.

‘‘क्या विचार कर रहे हो बौस?’’

‘‘यार, कोई पक्की नौकरी तो जम नहीं रही है, सोच रहा हूं, कुछ सर्वे के काम कर लूं. तुम तकनीकी रूप से दक्ष हो. अपन मिल कर यह काम कर लेंगे.’’

‘‘खाली बैठे हैं बौस, तब तक इस का अनुभव कर लेते हैं.’’

‘‘ठीक है, कल ही डूंगरपुर के लिए निकलते हैं. वहां अपने सीनियर एक्सईएन हैं. मु झे पता चला है, वहां यह काम मिल सकता है.’’

‘‘कल क्या, अभी चलो. और कुछ नहीं हुआ तो आसपास घूम आएंगे.’’

‘‘नहीं, कल शाम को निकलते हैं, आज मुझे कुछ काम है. तुम अपना सामान महीनेभर रुकने के हिसाब से बांध लेना.’’

‘‘एक महीना? अच्छा, काम मिल गया तो वहीं रुक कर शुरू हो जाएंगे, बढि़या.’’

अभिजीत अगली रात कुनाल के साथ बस का सफर करते उन के 2 साल बेरोजगारी के दुखड़े सुनता नए अनजाने मुकाम की ओर बढ़ चला था. 2 घंटे लगातार किस्सा सुनते कब नींद ने अपनी आगोश में भर लिया, पता ही न चला. सुबह पहले बस रुकते ही आंख खुली तो अपनेआप को एक छोटे से बसस्टैंड में पा कर अफसोस की लहर उठी. कुनाल के संग फिर एक छोटी सी धर्मशाला में ठिकाना पा कर कुछ परेशान सा हो उठा.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: कन्याऋण- एक मां क्यों नहीं समझ पाई बेटी का दर्द

‘‘यह कहां ले आए बौस?’’

उत्तर मे कुनाल मुसकरा भर दिए. ‘‘बस, नहाधो कर तैयार हो जाते हैं. फिर यहां से चल देंगे. 9 बजे औफिस पहुंचने से पहले पोहेकचौरी का भरपेट नाश्ता कर लेंगे.’’

सफर की थकान को कुछ देर विश्राम कर दूर करने का विचार आने से पूर्व ही जैसे किसी ने लात मार कर दूर भगा दिया.

ठीक 9 बजे वे एक्सईएन औफिस में प्रवेश कर चुके थे. एक घंटे इंतजार के बाद मुलाकात का अवसर आया. मूकदर्शक की भांति वह कुनाल की कारगुजारियों और वार्त्तालाप को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा था. अफसर के कुछ तकनीकी सवाल पर कुनाल जब अटकने लगे तो अभिजीत के  िझ झकते हुए जवाब ने एक्सईएन के चेहरे पर मुसकराहट ला दी. उन को एक लाख रुपए का काम एक महीने में कर के देने का और्डर मिल चुका था. डरमिश्रित खुशी के साथ दोनों बाहर आ कर चाय पीने लगे.

‘‘क्यों न हम अभी मौके पर जा कर काम शुरू कर दें,’’ कुनाल ने धीरे से पूछा.

‘‘बौस, पर करेंगे कैसे? कालेज में प्रैक्टिकल की क्लास भी आधे मन से  की थी.’’

‘‘चलते हैं, एक बार कोशिश तो कर के देखते हैं. और रहनेखाने का जुगाड़ भी जमा आते हैं,’’ कुनाल ने सम झाते हुए कहा.

औफिस से मिले इंस्टूमैंट्स और धर्मशाला से अपना सामान लाद कर एक लोकल बस में सवार हो कर नई कार्य मंजिल की ओर बढ़ चले. एक छोटे से गांव में उन को सामान सहित उतार कर बस आगे बढ़ गई. रास्ते में कुनाल ने पास बैठे यात्री से देशी भाषा में बात कर गांव के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी प्राप्त कर ली थी. अभिजीत को चाय की दुकान पर सामान की निगरानी के लिए बिठा कर कुनाल चल दिए. 2 घंटे इंतजार के बाद जब तक कुनाल लौटे तब तक वह 3 चाय और 2 बिस्कुट के पैकेट अपने उदर में उतार चुका था.

ये भी पढ़ें- Short Story: तू मुझे कबूल

‘‘चलो, आज रात रहने का इंतजाम हो गया है. ठाकुर साहब के रावणे में आज की रात ठहरेंगे. कल सुबह फिर काम की जगह का निरीक्षण करने चलेंगे,’’ कुनाल चहकते हुए बोले.

थकेहारे अभिजीत को लेटते ही गहरी नींद आ गई. गांव में खुले आसमान के नीचे सोने का उस का यह पहला अनुभव था. पौ फटते ही आंख खुली तो चहचहाती चिडि़यों और रंभाती गायों की सुकूनभरी आवाज के बीच जगना पहले कभी नसीब नहीं हुआ था. वह अपने को काफी तरोताजा महसूस कर पा रहा था. अपनी इस खुशगवारी को आत्मसात कर ही रहा था कि कुनाल स्नान कर तौलिए में लिपटे सामने से चले आ रहे थे.

‘‘हैंडपंप के गरम पानी से तुम भी फटाफट नहा लो. साइट को सूरज तेज होने से पहले ही देख आते हैं. मैं ने यहां के एक जानकार को अपने साथ काम करने के लिए राजी कर लिया है. घंटेभर में वह यहां से अपने को पूरा एरिया दिखाने ले चलेगा और दोचार लेबर भी जरूरत के हिसाब से मंगा देगा.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...