कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मां अपने जीवन का अनुभव बांट रही थीं पर यह नहीं समझ पा रही थीं कि उन का बेटा अब बड़ा हो गया है, उस की भी कुछ आवश्यकताएं हैं, इच्छाएं हैं. दिन में 3-4 बार फोन करतीं. रात को अगर आने में देर हो जाती तो 10 तरह के सवाल करतीं इसलिए वह मित्रों की पार्टी में भी सम्मिलित नहीं हो पाता था. झुंझलाहट तब और बढ़ जाती जब देर रात तक उसे आफिस में रुकना पड़ता और मां को लगता कि वह अपने मित्रों के साथ घूम कर आ रहा है. मां के तरहतरह के प्रश्न उसे क्रोध से भर देते खासकर जब वे घुमाफिरा कर यह जानने का प्रयत्न करतीं कि उस के मित्रों में कोई लड़की तो नहीं है. उन का आशय समझ कर भी वह उन्हें कुछ नहीं कह पाता तथा मां का अपने प्रति अतिशय प्रेम, चिंता समझ कर टालने की कोशिश करता.

मां का उस की जिंदगी में दखल और मां के प्रति उस का अतिशय झुकाव भांप कर मित्रों ने मां की पूंछ कह कर उस का मजाक बनाना प्रारंभ कर दिया. कोई कहता यार, तू तो अभी बच्चा है, कब तक मां का आंचल पकड़ कर घूमता रहेगा. आंचल छोड़ कर मर्द बन, कुछ निर्णय तो अपनेआप ले. सुन कर उस का आत्मसम्मान डगमगाता, स्वाभिमान को चोट लगती पर चुप रह जाता. अब उसे लगने लगा था कि मां का अपने बच्चे के प्रति प्यार स्वाभाविक है पर उस की सीमारेखा होनी चाहिए, बच्चे को एक स्पेस मिलना चाहिए. कम से कम उसे इस बात की तो छूट देनी चाहिए कि वह कुछ समय अपने हमउम्र मित्रों के साथ बिता सके. आज भी उस के मन में मां का स्थान सर्वोपरि है. आखिर मां ही तो है जिन्होंने न केवल उसे जिंदगी दी, उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में कितने ही कष्ट सहे. फिर भी मन में तरहतरह के प्रश्न और शंकाएं क्यों? वे अब भी जो कर रही हैं उस में उन का प्यार छिपा है. मां ने जीवन दिया है अगर वे ले भी लें तो भी इनसान उन के कर्ज से मुक्त नहीं हो सकता.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...