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वह घाटकोपर पहुंची. वहां सिनेमा व टीवी कलाकारों को ड्रैस, कौस्टयूम्स आदि किराए पर देने वाली कई दुकानें थीं. उस ने एक दुकान से सफेद विग, पुराने जमाने की साड़ी और एक प्लेन शीशे वाला चश्मा लिया और पहना. इस से वह संभ्रांत परिवार की प्रौढ स्त्री लगने लगी. वह जब बाहर निकली और कार के शीशे में अपना रूप देखा तो मुसकरा पड़ी. वहां से जुहू पहुंच उस ने कार एक पार्किंग में खड़ी की और उसी शोरूम में पहुंची. शोरूम 4 मंजिला था और दर्जनों कर्मचारी थे. अब पता नहीं किस की हरकत थी. तभी उसे याद आया कि स्कर्ट टौप सैकंड फ्लोर से खरीदा था. वह सैकंड फ्लोर पर पहुंची. वहां सब कुछ जानापहचाना था. सेल्स काउंटर खाली था. 2 लड़के एक तरफ खड़े गपशप मार रहे थे.

‘‘यस मैडम,’’ उस के पास आते ही विनोद बोला. श्वेता ने उस की आवाज को पहचान लिया. यही मोबाइल फोन पर बोलने वाला था.

‘‘मुझे भारी कपड़े का लेडीज सूट चाहिए. सर्दी में हवा से सर्दी लगती है.’’

सुरेश और विनोद मोटे कपड़े से बने कई सूट उठा लाए. एक सूट उठा उस ने पूछा, ‘‘यहां ट्रायल रूम कहां है?’’

सुरेश ने एक तरफ इशारा किया तो पहले से देखे ट्रायल रूम की तरफ वह बढ़ गई. फिर कैबिन बंद कर नजर डाली कि यहां कैमरा कहां हो सकता था. शायद टू वे मिरर के उस पार हो. स्थान और अपराधियों का पता तो चल गया था. अब इन को रंगे हाथ पकड़ना था. फिर वह बिना कुछ ट्राई किए वह बाहर निकल आई.

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