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‘‘पिछले कुछ महीनों से हम अलगअलग कमरे में सोते हैं. मेरी परछाईं से भी वह दूर भागती है. मेरी सूरत देखते ही जैसे उसे दौरा पड़ जाता है. मैं आत्महत्या ही कर लूंगा, मुझे ऐसा लगता है. तुम्हारे पास इसीलिए आया हूं. तुम नीरा से बात करो, पूछो उस से, वह क्या चाहती है…’’

विजय का कंधा थपथपा दिया मैं ने. थोड़ी देर के लिए खुद को विजय के स्थान पर रख कर सोचा, मेरी पत्नी अगर मेरी परछाईं से भी दूर भागे या मेरी सूरत देखते ही चीखनेचिल्लाने लगे तो क्या हो? जाहिर सा लगा कि कहीं मैं ने ही ऐसा कुछ किया है जो मेरी पत्नी के गले में कांटे सा फंस गया है.

नीरा भाभी जैसी संतोषी औरत बहुत कम नजरों के सामने आती हैं. जब वे ब्याह कर आई थीं तब ब्याहने लायक विजय की एक बहन भी घर में थी. पिता का साया उठ चुका था. पूरा घर विजय के कंधों पर था. अच्छा वर मिल गया तो एक क्षण भी नहीं लगाया था, भाभी ने अपनी कोरी, अनछुई साडि़यां और गहने ला कर विजय के सामने रख दिए थे.

भाभी ने बड़ी सहजता से अपना सब बांट लिया था इस परिवार के साथ. नीरा भाभी का निष्कपट रूप किसी गहने का मोहताज नहीं था, फिर भी एक शाम उन के कानों में छोटीछोटी चमकती बालियों को देखा तो सहसा मेरे होंठों से निकल गया था, ‘‘भाभी, आज कुछ बदलाबदला सा है आप में?’’

‘‘भैया, नई बाली पहनी है. थोड़ेथोड़े रुपए बचा कर आज ही लाई हूं.’’

मन भर आया था मेरा. सच में भाभी पर बालियां बहुत खिल रही थीं और फिर जिस औरत ने अपने मायके का सारा सोना विजय की बहन पर कुरबान कर दिया था वही औरत पाईपाई जोड़ अपने लिए पुन: एक छोटा सा गहना संजो पाई थी और उसी में बहुत संतुष्ट भी थी.

इसी तरह जराजरा संजोतेसंजोते, पता नहीं कहांकहां अपना मन मारते नीरा भाभी पूरी तरह विजय के जीवन में रचबस गई थीं. मेरी पत्नी के साथ भी भाभी का गहरा जुड़ाव है. हैरान हूं कि मेरी पत्नी ने भी कभी कुछ नहीं बताया. अगर पतिपत्नी में कुछ दूरी होती तो कभी तो नीरा भाभी उसे बतातीं.

‘‘नीरा भाभी से मिले तुम्हें कितने दिन होे गए?’’ मैं ने शोभा से पूछा जो उस समय शीना को खाना खिला रही थी.

‘‘काफी समय हो गया है. पहले उन के बच्चों के पेपर चल रहे थे इसलिए मैं नहीं गई. फिर भाभी के मायके में कोई शादी थी उस में वे व्यस्त रहीं, उस के बाद मैं शीना की वजह से नहीं मिल पाई,’’ सहज ही थी शोभा. सहसा बोली, ‘‘हां, मैं ने फोन किया था पर ज्यादा बात नहीं हो पाई थी…चलिए, आज चलें उन के घर.’’

मैं बिना कुछ बात बढ़ाए मान गया. शोभा को कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि वह पहले से ही कोई पूर्वाग्रह पाल ले. यदि नीरा भाभी में कुछ समस्या होगी तो अपनेआप ही शोभा भांप जाएगी.

शाम को हम दोनों उन के घर पहुंचे. भाभी को देख धक्का सा लगा. बीमार लग रही थीं. मैं पछता उठा कि कैसा इनसान हूं मैं कि जिसे इतना मानता हूं उसी की सुध लेने में काफी समय लगा दिया. समीप जा कर भाभी की बांह पकड़ी, इस से पहले कि मैं कुछ पूछूं, भाभी मेरी छाती से लग कर चीखचीख कर रोने लगीं.

‘‘सब खत्म हो गया भैया…मेरा सब समाप्त हो गया.’’

शोभा भी घबरा गई. भाभी की पीठ सहलासहला कर दुलारने लगी. वह ऐसी कोई भी बात नहीं जानती थी जिस का सिरा पकड़ बात शुरू कर पाती. किसी तरह शांत किया हम ने भाभी को.

‘‘क्या हो गया, भाभी? ऐसा क्या हो गया है जो आप ऐसा कहने लगीं? कितनी कमजोर हो गई हैं आप, बीमार हैं क्या?’’

भाभी चुप थीं. टकटकी लगा कर कभी हमारा मुंह देखतीं और कभी शून्य में कुछ निहारतीं. शोभा बारबार प्रश्न करती रही.

‘‘मेरा घर उजड़ गया है प्रकाश भैया, आप का भाई अब मेरा नहीं रहा…’’

‘‘आप को ऐसा क्यों लगा, भाभी, आप ने ऐसा क्या देखा?’’

मैं शोभा से नजरें चुरा रहा था. मैं नहीं चाहता था, वह जाने कि मैं भी कुछ जानता हूं.

‘‘पुरुष का तो कार्यक्षेत्र ही बाहर होता है भाभी, पूरे दिन में आधे से ज्यादा समय वह घर के बाहर खटता है, किसलिए? अपने परिवार के लिए ही न. विश्वास की डोर पर ही वह दूरदूर तक उड़ता है और अगर आप ही डोर तोड़ देंगी तो कैसे चलेगा.’’

 

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