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सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

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