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रात के डेढ़ बज रहे थे. ट्रेन प्लेटफौर्म पर रुकी. 80-वर्षीय रामशरण जी सामने आए रिजर्वेशन कोच में चढ़ गए. उन के जाने का प्रोग्राम अचानक बना है और जाना अत्यंत जरूरी भी है. सो, वे बिना रिजर्वेशन के ही उस कोच में घुस गए थे.

उन्हें पूरा यकीन था कि अभी टीटीई आ कर उन्हें दसबीस खरीखोटी सुनाएगा और फिर जुर्माने का डर दिखला कर बिना रसीद दिए ही किसी सीट को एहसान के साथ अलौट कर देगा.

जिस कोच में रामशरण जी चढ़े थे, संयोग से उस मे उन्हें सामने वाली ही सीट खली दिखाई पड़ गई और वे उस पर जा कर बैठ गए. ट्रेन अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गई. अभी कुछ मिनट ही गुजरे थे कि सामने टीटीई आ कर खड़ा हो गया. टीटीई तकरीबन 27-28 साल का नवयुवक था.

‘आप अपना टिकट दिखलाएंगे, अंकल,’ टीटीई बोला.

‘जी, यह देखिए मेरा टिकट. यह सामान्य श्रेणी का है. मेरे जाने का प्रोग्राम एकदम आकस्मिक बना, इसी कारण रिजर्वेशन नहीं करवा पाया. कृपया कोई बर्थ हो तो दे दीजिए,’ रामशरण जी अनुरोध करते हुए बोले.

‘क्या मैं आप के इस आकस्मिक कारण को जान सकता हूं?’ टीटीई के स्वर में अभी भी नरमी थी और रामशरण जी इस नरमी के मर्म को अच्छे से जानते थे. इस नरमी की आड़ में तगड़े पैसे खींचने की साजिश को भी वे अच्छे से जानते थे. वे स्वयं भी किसी ज़माने में सरकारी

अधिकारी रह चुके थे, सो, इन पैतरों को भलीभांति जानते थे.

‘जी, मेरे ताऊ जी के हमउम्र पुत्र का निधन हो गया है. वह मेरे काफी करीब था. इसी समाचार के कारण मुझे तुरंत निकलना पड़ा. चूंकि वह मेरी पीढ़ी का था, इसी कारण नई पीढ़ी के लोगों से उस का संपर्क नहीं के बराबर था. हम साथ खेलेबढे हुए हैं, सो, मैं ने स्वयं जाने का निर्णय

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