‘‘मेरे सामने तो तुम उसे राधा बहन मत बोलो. मुझे तो यह गाली की तरह लगता है,’’ मालती भड़क उठी.
‘‘अगर उस ने बिना कुछ पूछे अचानक आ कर मुझे राखी बांध दी, तो इस में मेरा क्या कुसूर? मैं ने तो उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था,’’ मोहन बाबू तकरीबन गिड़गिड़ाते हुए बोले.
‘‘हांहां, इस में तुम्हारा क्या कुसूर? उस नीच जाति की राधा से तुम ने नहीं, तो क्या मैं ने ‘राधा बहन, राधा बहन’ कह कर नाता जोड़ा था. रिश्ता जोड़ा है, तो राखी तो वह बांधेगी ही.’’
‘‘उस का मन रखने के लिए मैं ने उस से राखी बंधवा भी ली, तो ऐसा कौन सा भूचाल आ गया, जो तुम इतना बिगड़ रही हो?’’
‘‘उंगली पकड़तेपकड़ते ही हाथ पकड़ते हैं ये लोग. आज राखी बांधी है, तो कल को भाईदूज पर खाना खाने भी बुलाएगी. तुम को तो जाना भी पड़ेगा. आखिर रिश्ता जो जोड़ा है. मगर, मैं तो ऐसे रिश्तों को निभा नहीं पाऊंगी,’’ मालती ने अपने मन का सारा जहर उगल दिया.
राधा अभी राखी बांध कर गई ही थी कि उसे याद आया कि वह मोहन बाबू को मिठाई खिलाना भूल गई थी.
अपने घर से मिठाई ला कर वे खुशीखुशी मोहन बाबू के घर आ रही थी, मगर मोहन बाबू और उन की बीवी मालती की आपस में हो रही बहस सुन कर उस के पैर ठिठक कर आंगन में ही रुक गए.
जब राधा ने उन की पूरी बात सुनी, तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे लगा जैसे उस ने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो. वह चुपचाप उलटे पैर लौट गई. उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.