वह बिस्तर पर गमगीन सी बैठी हुई थी तभी मां चाय ले कर आ गईं. माही रात की बात से दुखी होगी, यह तो वे जानती थीं पर उन के हाथ में था भी क्या.
‘क्या हुआ माही. अब कैसी तबीयत है तेरी?’ मां स्नेह से उस का सिर सहलाते हुए बोलीं.
‘अब ठीक है मां. आप को भी रात भर सोने नहीं दिया मैं ने.’
‘अरे... कैसी बात कर रही है तू. अच्छा चल मुंहहाथ धो ले और चाय पी ले.’
माही चुपचाप चाय पीने लगी. मां ने अपना कप उठा लिया. दोनों चुप थे पर दोनों के दिल की बातों से परेशान थे.
‘मां, मेरी तबीयत अगर ऐसी ससुराल में खराब होती तो मेरे जेठजेठानी सारा घर सिर पर उठा लेते,’ अचानक माही बोली तो मां समझ गईं कि माही क्या कहना चाहती है. वे धीरे से उस के पास खिसक आईं, ‘माही, तू जिन रिश्तों की जड़ों को सींचना चाह रही है वे खोखली हैं. सूखी हुई हैं बेटा. खून के रिश्ते ही सब कुछ नहीं होते. जितनी कोशिश उन्हें अपनी भाभी के साथ बनाने की करती है, उस का अंशमात्र भी अपने जेठजेठानी के साथ करेगी तो वे रिश्ते लहलहा उठेंगे. जो रिश्ते तेरी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं उन्हें थाम. उन का स्वागत कर. जो तुझ से दूर भाग रहे हैं उन के पीछे क्यों भागती है?’ मां उस के और अपने मन के झंझावतों को शब्द देती हुई बोलीं.
‘‘ये तेरी मृगतृष्णा है कि कभी न कभी भाभी तेरे प्यार को समझेगी और तेरी तरफ कदम बढ़ाएगी. कुछ लोग प्यार की भाषा को कभी नहीं समझ पाते. पर तू प्यार की कीमत समझ माही. अपने जेठजेठानी के प्यार को समेट ले... वही हैं तेरे भैयाभाभी, जो तेरे दुखसुख में काम आते हैं. तेरा खयाल रखते हैं. तेरे अच्छेबुरे व्यवहार को तेरी नादानी समझ कर भुला देते हैं.’