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‘‘आज आप के तथाकथित गुरुजी कहां गए. आप की देखभाल करने क्यों नहीं आए वे. जिन के कारण आप ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा दी. आज उन्होंने अपनी करामात क्यों नहीं दिखाई? मुझ से क्या चाहते हैं आप. क्यों मुझे फोन किया गया था?’’ अपर्णा आवेश से भरे स्वर में बोली. तभी देवर अरुण आ गया. उस ने जो बताया, उसे सुन कर अपर्णा दंग रह गई.

‘‘आप के जाने के बाद भैया एकदम निरंकुश हो गए. गुरुजी के आश्रम में कईकई दिन पड़े रहते. घर पर ताला रहता और भैया गुरुजी के आश्रम में. गुरुजी के साथ ही दौरों पर जाते. गुरुजी के आश्रम में सेविकाएं

भी आती थीं. गुरुजी सेविकाओं से हर प्रकार की सेवा करवाते थे. कई बार गुरुजी के कहने पर भैया ने भी अपनी सेवा करवाई. बस, उसी समय कोई इन्हें तोहफे में एड्स दे गई. गुरुजी और उन के आश्रम के लोगों को जैसे ही भैया की बीमारी के बारे में पता चला, उन्होंने इन्हें आश्रम से बाहर कर दिया. और आज 3 साल से कोई खैरखबर भी नहीं ली है.’’

अपर्णा मुंह खोले सब सुन रही थी. उस ने नितिन की ओर देखा तो उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए मानो अब तक की सारी काली करतूतों को एक माफी में धो देना चाहता हो.

अपर्णा कुछ देर सोचती रही, फिर नितिन की ओर घूम कर बोली, ‘‘नितिन, मेरातुम्हारा संबंध कागजी तौर पर भले ही न खत्म हुआ हो पर दिल के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. जब मेरे दिल में ही तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है, तो कागज क्या करेगा? जहां तक माफी का सवाल है, माफी तो उस से मांगी जाती है जिस ने कोई गुनाह किया हो. तुम ने आज तक जो कुछ भी मेरे साथ किया, उसे भुलाना तो मुश्किल है, पर हां, माफ करने की कोशिश करूंगी. पर अब तुम मुझ से कोई उम्मीद मत रखना.

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