कई साल पहले अपनी नईनई नौकरी के सिलसिले में जब मैं इस शहर में आया था, तो उस समय बिना किसी परेशानी के एक शानदार कमरा किराए पर मिल गया था. दरअसल, मकान मालिक बड़े ही भले आदमी थे. दिन आराम से गुजर रहे थे.
लेकिन एक दिन मकान मालिक अपनी पत्नी के साथ मेरे कमरे में आए और कहने लगे, ‘‘बेटा, हमें बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि तुम्हें अब यह कमरा खाली करना पड़ेगा.’’
इतना सुनते ही मेरे होश उड़ गए. खुद को संभालते हुए मैं ने पूछा, ‘‘यह अचानक क्या हो गया? क्या मुझ से कोई भूल हुई है?’’
जवाब मिला, ‘‘बेटा, मुसीबत अचानक ही आती है. हमें अभीअभी सूचना मिली है कि हमारे साले साहब का तबादला इसी शहर में हो गया है. श्रीमती चाहती हैं कि वे लोग हमारे साथ ही रहें.’’
मामला जोरू के भाई का था. मैं समझ गया कि बहस करना बेकार है.
बस उसी दिन और उसी समय से नए मकान की तलाश शुरू हो गई. दफ्तर जाने से पहले और वहां से आने के बाद मकान की तलाश में शहर की खाक छानता रहता. जहां जाता सिर्फ एक ही सवाल पूछा जाता, ‘‘क्या आप शादीशुदा हैं? हम अपना मकान बालबच्चेदार को ही देंगे. छड़े को दे कर क्या अपनी बदनामी करानी है.’’
मैं सोचने लगा, ‘क्या सचमुच
आदमी शादी के बाद एकदम शरीफ हो जाता है?’
खैर, जो भी हो, मेरा कुंआरापन मेरे और मकान के बीच खाई बना हुआ था.
एक दिन मेरे एक दोस्त दीपक ने किसी खाली मकान का पता दिया. लेकिन यह भी बताया कि तुम्हारा कुंआरापन वहां भी आड़े आएगा. थकाहारा जब मैं वापस अपने घर पहुंचा, तो दरवाजे पर ही मकान मालिक टकरा गया. सिर झुकाए बिना कुछ कहे मैं चुपचाप अपने कमरे में चला गया.
तभी एक नया खयाल मेरे दिमाग में आया और मेरे होंठों पर मुसकान फैल गई. मैं बेफिक्र हो कर सो गया.
दूसरे दिन सवेरे ही दोस्त के बताए हुए पते पर जा पहुंचा. मकान अच्छा था. मैं ने तय कर लिया कि हर हालत में यह मकान ले कर ही रहूंगा, चाहे जो हो जाए.
तभी मकान मालिक ने पूछा, ‘‘आप शादीशुदा हैं न?’’
मैं ने किसी शर्मीले पति की तरह ‘हां’ में सिर हिला दिया. मैं ने उन्हें यकीन दिलाया कि मकान मिलते ही बीवी को गांव से ले आऊंगा. मेरी बातचीत ने मकान मालिक का मन मोह लिया. आखिर मुझे वह मकान मिल गया.
अगले ही दिन मैं अपने सामान के साथ नए मकान में आ गया. एक परेशानी के खत्म होते ही दूसरी में फंस गया. अब सवाल यह था कि पत्नी कहां से लाऊं? दिल में हमेशा डर बना रहता कि कहीं पोल न खुल जाए और इस घर से ही धक्के मार कर निकाल न दिया जाऊं.
एक दिन अपने दफ्तर में इसी परेशानी में खोया हुआ था कि अचानक मेरी निगाह सामने बैठी मीना पर पड़ी. थोड़ी देर बाद मैं उसे कैंटीन में ले गया.
अचानक उस ने पूछा, ‘‘आजकल तुम कुछ ज्यादा ही परेशान दिखाई
देते हो?’’
मरियल सी आवाज में मैं ने अपनी पूरी कहानी उसे सुना दी और सवालिया निगाहों से उस की ओर देखने लगा.
लड़की काफी समझदार थी. बात फौरन समझ गई. अपने होंठों पर शरारत भरी मुसकान बिखेरते हुए वह कहने लगी, ‘‘दोस्त ही दोस्त के काम आता है. जाओ, अपने मकान मालिक से कह दो कि इतवार को तुम्हारी पत्नी आ रही है.’’
मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘कैसे…?’’
उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘यह सब
तुम मुझ पर छोड़ दो. बस जैसा कहती
हूं, करते जाओ, तुम्हारा कल्याण हो जाएगा.’’
लड़की होशियार थी. मुझे उस की काबिलीयत पर भरोसा था. दफ्तर से घर आते ही मैं ने मकान मालिक को कह दिया कि मेरी पत्नी इतवार को आ रही है.
मेरे चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. मेरी हालत देख कर मकान मालिक का पूरा परिवार मेरे इर्दगिर्द जमा हो गया.
मकान मालिक ने कहा, ‘‘यह तो खुशी की बात है. पर तुम उदास क्यों हो गए हो?’’
मैं ने झुंझला कर कहा, ‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या… वह आ ही रही है, खुद देख लीजिएगा,’’ इतना कह कर मैं अपने कमरे में चला गया.
इतवार की सुबह मैं स्टेशन की ओर चला गया. तकरीबन एक घंटे बाद मैं मीना के साथ लौटा.
उस के आते ही उन लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. लेकिन मेरी ‘पत्नी’ ने रूखी आवाज में कहा, ‘‘मुझे ये सब चोंचले जरा भी अच्छे नहीं लगते. अपना कमरा बताओ?’’
मैं ने बिना कुछ कहे अपने कमरे की ओर उंगली उठा दी. वह सीधी कमरे में जा कर पलंग पर पसर गई और कहने लगी, ‘‘इन लोगों से कहो कि अब जाएं, मुझे आराम करने दें.’’
उस के इस तरह कहने से पलभर के लिए मुझे भी गुस्सा आ गया, लेकिन खामोश रहने में ही भलाई थी.
मकान मालिक की पत्नी बड़बड़ाते हुए वहां से चली गई. अपनी कामयाबी पर मैं ने मीना से हाथ मिलाया. थोड़ी देर बाद अपने हाथों में डब्बा और थर्मस लिए मैं कमरे के बाहर निकला. मकान मालकिन मुझे हैरानी से देखने लगीं.
मैं ने कहा, ‘‘चाची, मैं जरा बाजार जा रहा हूं. उस के लिए होटल से खाना और चाय ले कर बस अभी लौटता हूं. आप उस की बातों का बुरा न मानें. वैसे, वह दिल की बुरी नहीं है.
‘‘मेरे बाजार से वापस आने तक उस के पास ही बैठें तो बड़ी मेहरबानी होगी. मैं ने उसे सब समझा दिया है. हो सके, तो उसे दुनियादारी की बातें समझाइए… अभी नईनई है न, धीरेधीरे सब सीख जाएगी.’’
तकरीबन एक घंटे बाद मैं जब लौटा, तो घर का ‘सीन’ ही बदला हुआ था. मेरी पत्नी यानी मीना अपनी कमर में दुपट्टा लपेटे किसी भूखी शेरनी की तरह मकान मालकिन पर झपट्टा मारने को तैयार खड़ी थी. उस की आंखों से चिनगारियां बरस रही थीं.
उधर दूसरी तरफ मकान मालकिन को संभाले उन की लड़कियां गुस्से से उबल रही थीं.
मुझे देखते ही मेरी पत्नी दहाड़ी, ‘‘इसीलिए लाए थे कि कोई ऐरागैरा
नत्थू खैरा मुझे यहां मेरी बेइज्जती करता रहे. यह बुढि़या मुझे पवित्रता के गुण सिखा रही है. बड़ी आई सती सावित्री… क्या समझती है अपनेआप को…
मुंह नोच कर रख दूंगी इस का.’’
अभी पत्नी की दहाड़ खत्म भी नहीं हुई थी कि मकान मालकिन ने रेंकना शुरू किया, ‘‘ऐ मिस्टर, निकालो इस परकटी लोमड़ी को हमारे घर से… मैं इसे एक पल भी यहां नहीं रहने दूंगी.’’
पत्नी बीच में ही चीखी, ‘‘यहां रहेगी मेरी जूती. मैं तो थूकती भी नहीं ऐसे मकान को.’’
मकान मालकिन दहाड़ीं, ‘‘निकालो इसे बाहर, वरना आज किसी एक का खून हो कर रहेगा.’’
दोनों एकदूसरे पर झपटने की कोशिश करती रहीं. इधर मैं और उधर मकान मालिक अपनी बीवी को संभाले हुए खड़े हुए थे.
मैं ने अपनी पत्नी को कमरे के भीतर धकेल कर बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और मकान मालकिन से माफी मांगने लगा, ‘‘मेहरबानी कर के चुप हो जाइए. अभी तो इसे गांव वापस नहीं भिजवा सकता. अगर यह मेरी पत्नी है, तो जब तक चाहे रहेगी. आप कहेंगे तो जल्दी ही आप का मकान भी खाली कर दूंगा. अब क्या मुंह ले कर रहूंगा आप लोगों के बीच.’’
अगली शाम को जब मीना और मैं घर आए, तो देखा कि दरवाजे पर मेरे मातापिता और मीना के मातापिता दोनों खड़े थे और 2 टैक्सियों और 2 टैंपों से सामान उतर रहा था. मीना लपक कर अपने मांबाप से गले मिलने लगी और बोली, ‘‘यही हैं मनोज और ये मनोज के मातापिता हैं.’’
मेरे मातापिता बड़े प्यार से मीना मिले. मां ने तो मीना को गले लगा लिया, ‘‘अरे मेरे बुद्धू बेटे को इतनी होशियार व सुंदर लड़की कैसे मिल गई.’’
मीना के पिता ने कहा, ‘‘मनोज, चलो मंगनी की रस्म पूरा करते हैं. पर, यहां नहीं मकान मालिक के ड्राइंगरूम में.’’
मैं… भौचक्का सा सब का मुंह देख रहा था.
मीना बोली, ‘‘अरे, ये उल्लुओं की तरह क्या देख रहो. मेरे मातापिता को नमस्कार करो. ये आज से तुम्हारे सासससुर यानी मांबाप जैसे हुए न.’’
अपनी कामयाबी की खुशी को छिपा पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था. मैं भागता हुआ अपने कमरे में चला
गया और मारे खुशी के मीना से, जो मेरी पत्नी बनी भीतर बैठी हुई थी, जा कर लिपट गया.
लेकिन मुझे क्या मालूम था कि मकान लेने के लिए खेला गया नाटक आगे चल कर सचाई में बदल जाएगा. आज मैं उसी मीना का एकलौता पति हूं और वह मेरी प्यारी बीवी है. ………..