अब व्यापार के काम के बहाने मैं हफ्तों फ्लोरेंस के घर पड़ा रहता था. धीरेधीरे शिलांग के साडि़यों के शोरूम की पूरी बागडोर उस ने अपने हाथों में ले ली थी. इधर मुझे यह खुशखयाली भी रहने लगी कि फ्लोरेंस की सारी जमीन अब मेरी है. मैं ही उस का असली मालिक हूं.
फ्लोरेेंस से मेरे संबंधों की खबर खुशी और मेरे परिवार वालों को लग गई थी जिस की वजह से खुशी बहुत दुखी रहने लगी थी. मैं जब भी घर जाता, वह मुझ से कहती, ‘देखो, तुम क्यों उस खासी युवती को इतनी अहमियत दे रहे हो? क्या मुझे और मेरे बेटे को तुम्हारा साथ, तुम्हारा वक्त नहीं चाहिए? आज तुम मानो या न मानो पर देखना, एक दिन वह खासी औरत तुम्हारा साड़ियों का शोरूम हड़प लेगी. तुम ने यहां का शोरूम भी नौकरों के भरोसे छोड़ दिया है. वहां की आमदनी पहले से आधी रह गई है. तुम क्यों अपना सर्वनाश करने पर तुले हुए हो?’
खुशी की बातें सुन कर मैं गुस्से में भर उठा था और उस को चांटा मार कर घर से बाहर निकल आया था.
उसी दिन मैं शिलांग चला गया था. समय पंख लगा कर उड़ता चला गया और मेरा बेटा बड़ा हो चला था. जैसेजैसे वह समझदार होता जा रहा था, वह भी मुझ से दूर होता जा रहा था. मैं उसे अपने करीब लाने की भरसक कोशिश करता, पर वह मुझ से हमेशा अनमना सा रहता और अजनबियों की तरह पेश आता.
फ्लोरेंस से भी मेरा एक बेटा था जिसे मैं बेहद प्यार करता था. जैसेजैसे वह बड़ा हो रहा था वह भी मेरे नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था.