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अंजलि खुद को घर की मुखिया मानती थी. हर किसी को आदेश देना उसे अपना हक लगता. सब उस के ढंग से उस के कहे पर चलें, यह इच्छा उस के मन में गहरी जड़ें जमाए हुए थी.

सीमा और प्रिया बाहर से आ कर परिवार का अंग बनी थीं. अंजलि सब की शुभचिंतक है, इस का एहसास सभी को था, पर उस के तानाशाही व्यवहार के चलते घर का माहौल तनावपूर्ण रहता. पूरी स्थिति अनुज की शादी के बाद ज्यादा बिगड़ी थी. सीमा और प्रिया को एकदूसरे के सामने अंजलि से दबनाडरना जरा भी नहीं भाता था. बड़ी ननद का व्यवहार दोनों को धीरेधीरे असहनीय होता जा रहा था.

घर में बढ़ती कलह व असंतोष की खबरें मुझे रोज ही फोन पर मिल जाती थीं. घर की तीनों स्त्रियां मुझे अपनेअपने पक्ष में करने के लिए एक ही घटना को अलगअलग रंग दे कर सुनातीं. दोनों भाई इन परिस्थितियों से बेहद दुखी व परेशान थे.

अपने दिवंगत भैयाभाभी के परिवार को यों दुखी, परेशान व तनावग्रस्त देख मैं अकसर आंसू बहाने लगती. इस समस्या के समाधान की जरूरत मुझे शिद्दत से महसूस होने लगी थी.

समस्या का समाधान करीब 3 महीने पहले राकेश के रूप में सामने आया था. वह मेरी बहुत पुरानी सहेली सुषमा का बड़ा बेटा था. उस की पत्नी सड़क दुर्घटना में करीब 3 साल पहले चल बसी थी. कोई संतान न होने के कारण राकेश बिलकुल अकेला रह गया था. अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवारों के साथ रहते हुए भी अकेलापन दर्शाने वाली उदासी उस के चेहरे पर बनी ही रहती थी.

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