‘17 साल की उम्र में फौज में गया तो वहां भी इस क्यों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. सही होता तो भी क्यों का प्रश्न किया जाता और सही न होता तो भी. 11 साल तक तन, मन, धन से घर वालों की सेवा की. परिवार छूटते समय मेरे समक्ष फिर यह क्यों का प्रश्न था कि मैं ने अपने लिए क्यों कुछ बचा कर नहीं रखा. तुम से शादी हुई, पहली रात तुम्हें कुछ दे नहीं पाया, मुझे पता ही नहीं था कि कुछ देना होता है. पता होता भी तो दे नहीं पाता. मेरे पास कुछ था ही नहीं. 2 महीने की छुट्टी में मिले पैसे से मैं ने शादी की थी. मैं तुम्हें सब कैसे बताता और तुम क्यों सुनतीं? बताने पर शायद कहतीं, ऐसा था तो शादी क्यों की?
‘‘तुम्हारे समक्ष मेरी इमेज क्या थी? मैं बड़ी अच्छी तरह जानता हूं. तुम ने इस इमेज को कभी सुधरने का मौका नहीं दिया, अफसर बनने पर भी. उलटे मुझे ही दोष देती रहीं. तुम्हारे रिश्तेदार मेरे मुंह पर मुझे आहत कर के जाते रहे, कभी तुम ने इस का विरोध नहीं किया. मुझे याद है, तुम्हारी बहन रचना की नईनई शादी हुई थी. रचना और उस के पति को अपने यहां बुलाना था. तुम चाहती थीं, शायद रचना भी चाहती थी कि इस के लिए मैं उस के ससुर को लिखूं.
‘‘मैं ने साफ कहा था, मेरा लिखना केवल उस के पति को बनता है, उस के ससुर को नहीं. जैसे मैं साहनी परिवार का दामाद हूं, वैसे वह है. मैं उस का ससुर नहीं हूं. बात बड़ी व्यावहारिक थी परंतु तुम ने इस को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया था. मन के भीतर अनेक क्यों के प्रश्न होते हुए भी मैं तुम्हारे सामने झुक गया था. मैं ने इस के लिए उस के ससुर को लिखा था.
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