अब तो रोज ही नवीनजी उन्हें देखने अस्पताल आ जाते. साथ में फल लाना न भूलते. उन का खुशमिजाज स्वभाव जानकी को अंदर ही अंदर छू रहा था.
करीब 8 दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली. शाम तक वे घर वापस आ गईं. वे अभी रात के खाने के बारे में सोच ही रही थीं कि तभी नवीनजी डब्बा ले कर आ गए.
जानकी सकुचाते हुए बोलीं, ‘‘आप ने नाहक तकलीफ की. मैं थोड़ी खिचड़ी खुद ही बना लेती.’’
नवीनजी ने खाने का डब्बा खोलते हुए जवाब दिया, ‘‘अरे जानकीजी, वही तो मैं लाया हूं, लौकी की खिचड़ी. आप खा कर बताइएगा कि कैसी बनी? वैसे एक राज की बात बताऊं, खिचड़ी बनाना मेरी पत्नी ने मुझे सिखाया था. वह रसोई के काम में बड़ी पारंगत थी. वह खिचड़ी जैसी साधारण चीज को भी एक नायाब व्यंजन में बदल देती थी,’’ कहने के साथ ही वे कुछ उदास से हो गए. इस दुनिया से जा चुकी पत्नी की याद उन्हें ताजा हो आई.
जीवनसाथी के बिछोह का दुख वे जानती थीं. उन्होंने नवीनजी के दर्द को महसूस किया व तुरंत प्रसंग बदलते हुए पूछा, ‘‘नवीनजी, आप के कितने बच्चे हैं और कहां पर हैं?’’
‘‘मेरे 2 बेटे हैं व दोनों अमेरिका में ही सैटल हैं,’’ उन्होंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया फिर उठते हुए बोले, ‘‘अब आप आराम कीजिए, मैं चलता हूं.’’
जानकी को लगा कि उन्होंने नवीनजी की कोई दुखती रग को छू लिया है. वे अपने बेटों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहते.
अब तो अकसर नवीनजी जानकी के यहां आने लगे. वे लोग कभी देश के वर्तमान हालत पर, कभी समाज की समस्याओं पर और कभी टीवी सीरियलों के बारे में चर्चा करते पर अपनेअपने परिवार के बारे में दोनों ने कभी कोई बात नहीं की.