कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

समय सपनों की तरह बीतने लगा था. संगीता की हर छोटीबड़ी खुशी का खयाल दीक्षित दंपती रखने लगे थे. संगीता की सेवा के लिए अलग से एक आया रखी गई थी. रिया और जिया अच्छी तरह रहने लगी थीं. विक्रम यह सब देख कर खुश था कि उस का परिवार सुखों के झूले में झूलने लगा था.

संगीता अपनी बेटियों के खिले चेहरों को देख कर, अपने पति को निश्चिंत देख कर खुश थी लेकिन अपने आप से खुश नहीं हो पाती थी. पता नहीं क्यों, अपने अंदर पल रहे जीव से वह जुड़ नहीं पा रही थी. उसे वह न अपना अंश लगता था न उस के प्रति ममता ही जाग रही थी. उसे हर पल लगता कि वह एक बोझ उठाए ड्यूटी पर तैनात है और उसे अपने परिवार के सुनहरे भविष्य के लिए एक निश्चित समय तक यह बोझ उठाना ही है.

भले ही अपनी दोनों बेटियों के जन्म के दौरान संगीता ने बहुत कष्ट व कठिनाइयां झेली थीं. तब न डाक्टरी इलाज था और न अच्छी खुराक ही थी. उस पर घर का सारा काम भी उसे करना पड़ता था फिर भी उसे वह सब सुखद लगता था, लेकिन अब कदमकदम पर बिछे फूल भी उसे कांटों जैसे लगते थे. अपने भीतर करवट लेता नन्हा जीव उसे रोमांचित नहीं करता था. उस के दुनिया में आने का इंतजार जरूर था लेकिन खुशी नहीं हो रही थी.

आखिर वह दिन भी आ गया जिस का दीक्षित दंपती को बहुत बेसब्री से इंतजार था. सुबह लगभग 4 बजे का समय था, संगीता प्रसव पीड़ा से बेचैन होने लगी. घबराया सा विक्रम दौड़ कर कोठी में खबर करने पहुंचा. संगीता को तुरंत गाड़ी में बिठा कर नर्सिंगहोम ले जाया गया. महिला डाक्टरों की एक पूरी टीम लेबररूम में पहुंच गई जहां संगीता दर्द से छटपटा रही थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD4USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...