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‘‘क्या रजत का दिल नहीं करता होगा कि उस के दोस्तों की बीवियों की तरह उस की पत्नी भी स्मार्ट व शिक्षित दिखे, इतना वजन बढ़ा लिया है तुम ने... इस बेडौल शरीर को ढोना तुम्हें क्या उच्छा लगता है? तुम अच्छी पत्नी तो बनी छवि पर अच्छी साथी न बन सकी अपने पति की... सोचो छवि, कई लड़कियों को ठुकरा कर रजत ने तुम्हें पसंद किया था. कहां खो गईर् वह छवि, जिसे वह दीवानों की तरह प्यार करता था?’’

रीतिका की बातें सुन कर छवि को याद आने लगा कि ऐसा कुछ रजत भी कहता था. कई तरह से कई बातें समझाना चाहता था पर उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. रजत की बातें कभी समझ में नहीं आईं पर रीतिका की बातें उस के कहने के अंदाज से समझ में आ रही थीं.

रीतिका उसे चुप देख कर फिर बोली, ‘‘छवि आज यह बात स्त्रियों पर ही नहीं पुरुषों पर भी समान रूप से लागू होती है... स्मार्ट और शिक्षित स्त्री भी अपने पति में यही सब गुण देखना पसंद करती है... बड़ी उम्र की महिलाएं भी आज अपने प्रति उदासीन नहीं हैं... वे अपने रखरखाव के प्रति सजग हैं... बेडौल पति तो उन्हें भी अच्छा नहीं लगता. फिर पुरुष की तो यह फितरत है.’’

‘‘तो मैं अब क्या करूं रीतिका?’’ छवि हताश सी बोली.

‘‘करना चाहोगी तो सबकुछ आसान लगेगा... पहले तो घर के पास वाला जिम जौइन कर लो... तरहतरह के पकवान बनाना थोड़ा कम करो... रोज का अखबार पढ़ो... टीवी पर समाचार सुनो... बाहर के हर कार्य के लिए बेटे और रजत पर निर्भर मत रहो, खुद करो... इन सब बातों से विश्वास बढ़ता है और विश्वास बढ़ने से व्यक्तित्व निखरता है और व्यक्तित्व निखरने से पति पर अधिकारभावना खुद आ जाएगी.’’

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