Writer- VInita Rahurikar
बारिश शुरू हुई तो उस की पहली फुहार ने पेड़पौधों के पत्तों पर जमी धूल को धो दिया. मिट्टी से सोंधीसोंधी गंध उठने लगी. ठंडी हवा चलने लगी. सारी प्रकृति, जो अब तक गरमी से बेहाल थी बारिश से तृप्त हो जाना चाहती थी. पेड़पौधे ही नहीं, पशुपक्षी भी बारिश का आनंद लेने आ गए. कहीं गड्ढे में जमा पानी में चिडि़यों का झुंड पंख फड़फड़ाता हुआ खेल रहा था, तो कहीं छोटेछोटे बच्चे घरों से कागजों की नावें ला कर उन्हें पानी में तैराते हुए खुद भी भीग रहे थे. छतों पर कुंआरी ननदें और सयानी भाभियां भी भीगने के लोभ से बच न पाईं और बड़ों की आंखें बचा कर फुहारों में अपना आंचल भिगो कर एकदूसरे पर पानी के छींटे उड़ाने लगीं. घरों के बरामदों और गैलरियों में बड़ेबुजुर्गों की कुरसियां लग गईं और वे बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगे.
इन सारी खुशियों के बीच खिड़की के कांच से बाहर देखती पलक के चेहरे पर खुशी बिलकुल नहीं थी. उस के चेहरे पर तो उदासी और दुख की घनी बदली छाई हुई थी. वह उदास चेहरा ले कर दुखी मन से बाहर की खुशियों को देख रही थी. सामने चंपा
के पेड़ की पत्तियों से पानी की बूंदें फिसलफिसल कर नीचे गिर रही थीं. पलक निर्विकार भाव से बूंदों का थमथम कर नीचे गिरना देख रही थी.
ये भी पढ़ें- Top 10 Best Family Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में
पलक के मातापिता बरामदे में खड़े ठंडी हवा का मजा ले रहे थे.
‘‘भई, आज तो पकौड़े खाने का मौसम है. प्याज के बढि़या कुरकुरे पकौड़े और गरमगरम चाय हो जाए,’’ पलक के पिता ने कहा.
‘‘मैं अभी बना कर लाती हूं,’’ कह कर पलक की मां रसोईघर में चली गईं. प्याज काट कर उन्होंने पकौड़े तले और चाय भी बना ली. पकौड़े और चाय टेबल पर रख कर उन्होंने पलक को आवाज लगाई.
‘‘तुम ने पलक से बात की?’’ पलक के पिता आनंदजी ने पूछा.
‘‘अभी नहीं की. सोच रही हूं 1-2 दिन में पूछूंगी,’’ अरुणा ने उत्तर दिया.
‘‘जल्दी बात करो. जब से आई है उदास और बुझीबुझी लग रही है. अच्छा नहीं लग रहा,’’ आनंदजी ने चिंतित स्वर में कहा.
तभी पलक के आने की आहट पा कर दोनों चुप हो गए. साल भर पहले ही तो उन्होंने बड़ी धूमधाम से पलक का विवाह किया था. पलक उन की एकलौती बेटी थी, इसलिए पलक का विवाह कहीं दूर करने का उन का मन नहीं था. वे चाहते थे कि पलक का विवाह इसी शहर में हो और इत्तफाक से पिछले साल उन की इच्छा पूरी हो गई.
पलक के लिए इसी शहर से रिश्ता आया. शादी हुई तो पीयूष के रूप में उन्हें दामाद नहीं बेटा मिल गया. उस के मातापिता भी बहुत सुलझे हुए और सरल स्वभाव के थे. पलक को उन्होंने बहू की तरह नहीं, बल्कि बेटी की तरह रखा. पलक भी अपने घर में बहुत प्रसन्न थी. जब भी मायके आती चहकती रहती. उस की हंसी में उस के मन की खुशी छलकती थी.
लेकिन इस बार बात कुछ अलग ही है. एक तो पलक अचानक ही अकेली चली आई है और जब से आई है, तब से दुखी लग रही है. उन दोनों के सामने वह सामान्य और खुश रहने की भरसक कोशिश करती है, लेकिन मातापिता की अनुभवी नजरों ने ताड़ लिया है कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.
पहले पलक 2 दिन के लिए भी मायके आती थी, तो पीयूष औफिस से सीधे यहीं आ जाता था और रात का खाना खा कर घर जाता था. दिन में भी कई बार पलक के पास उस का फोन आता था.
लेकिन इस बार 5 दिन हो गए पलक को घर आए, एक बार भी पीयूष उस से मिलने नहीं आया. यहां तक कि उस का फोन भी नहीं आया और पलक ने भी एक बार भी पीयूष को फोन नहीं किया. आनंद और अरुणा की चिंता स्वाभाविक थी. एकलौती बेटी का दुख से मुरझाया चेहरा उन से देखा नहीं जा रहा था.
ये भी पढ़ें- शर्त: क्यों श्वेता अपनी शादी से खुश नहीं थी?
पीयूष, उस का पीयूष. कालेज के दिनों में दोस्तों ने एक पार्टी में उसे जबरदस्ती शराब पिला दी तो नशे में चूर हो कर उस ने रात में दोस्त के फार्महाउस पर एक लड़की को अपना एक कण दे दिया. उस का पीयूष पूरा नहीं है, खंडित हो चुका है. पलक को कभी पूरा पीयूष मिला ही नहीं था. उस का एक कण तो उस लड़की ने पहले ही ले लिया था. पलक के सामने सच बोल कर पीयूष ने अपने मन का बोझ हलका कर दिया, लेकिन तब से पलक का मन पीयूष के इस सच के बोझ तले छटपटा रहा है.
पीयूष के इस सच को वह सह नहीं पाई. उस सच ने उसे अचानक ही उस के पास से उठा कर बहुत दूर पटक दिया. पल भर में ही वह इतना पराया लगने लगा, मानो कभी अपना था ही नहीं. दोनों के बीच एक अजनबीपन पसर गया. अजनबी के अजनबीपन को सहना आसान होता है, लेकिन किसी बहुत अपने के अजनबीपन को सहना बहुत मुश्किल होता है. पलक जब अजनबीपन को बरदाश्त नहीं कर पाई तो यहां चली आई.
काश, पीयूष उसे कभी सच बताता ही नहीं. कितना सही कहा है किसी ने, सच अगर कड़वा बहुत है तो मीठे झूठ की छाया में जीना अच्छा लगता है. वह भी पीयूष के झूठ की छाया में सुख से जीवन बिता लेती. कम से कम उस के सच की आंच में जिंदगी यों झुलस तो न जाती.
उधर पीयूष पश्चात्ताप की आग में जल रहा था कि क्यों उस ने अपना यह राज अपने सीने से बाहर निकाला? क्यों नहीं छिपा कर रख पाया? दरअसल पलक का निश्छल प्यार, उस का समर्पण देख कर मन ही मन उसे ग्लानि होती थी. ऐसे में बरसों पहले की गई अपनी गलती को अपने मन में दबाए रखने पर एक अपराधबोध सा सालता रहता था हर समय. इसलिए अपने मन का बोझ उस ने भावुक क्षणों में पलक के सामने रख दिया.