मैं शाम की सैर से घर लौटी ही थी. पसीने से तरबतर थी. तभी डोरबैल बजी. विपिन औफिस से आ गए थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘रश्मि, क्या हुआ?’’
मैं ने रूमाल से पसीना पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, बस अभीअभी सैर से लौटी हूं.’’ ‘‘हूं,’’ कहते हुए विपिन बैग रख फ्रैश होने चले गए.
मैं 10 मिनट फैन के नीचे खड़ी रही. फिर मैं विपिन के लिए चाय चढ़ा कर थोड़ा लेटी ही थी कि विपिन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘आज गरमी में हालत खराब हो गई. अजीब सी थकान हो रही है.’’
विपिन छेड़छाड़ के मूड में आ गए थे. मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, उम्र भी तो हो रही है.’’ एक तो गरमी से परेशान ऊपर से विपिन की बात से मैं और तप गई.
तुनक कर बोली, ‘‘कौन सी उम्र हो रही है? अभी 50 की भी नहीं हुई हूं. हर समय उम्र का राग अलापते रहते हो.’’ विपिन ने और छेड़ा, ‘‘सच बहुत कड़वा होता है रश्मि.’’
मैं ने जलतेकुढ़ते उन्हें चाय का कप पकड़ाया. मैं इस समय चाय नहीं पीती हूं. फिर शीशे में जा कर खुद पर नजर डाली, ‘‘हुंह, कहते हैं उम्र हो रही है… सभी कौंप्लिमैंट देते हैं… इतनी फिट हूं… और विपिन कुछ भी हो जाए उम्र की बात करेंगे… सब से बड़ी बात यह कि जब मैं खुद को यंग महसूस करती हूं तो यह जरूरी है क्या कि कभी कुछ हो जाए तो उम्र ही कारण होगी? हुंह, कुछ भी बोलते रहते हैं. इन की बातों पर कौन ध्यान दे. गुस्सा अपनी ही हैल्थ के लिए ठीक नहीं है… बोलने दो इन्हें.
थोड़ी देर में हमारे बच्चे वान्या और शाश्वत भी कोचिंग से आ गए. सब अपने रूटीन में व्यस्त थे. डिनर करते हुए अचानक मुझे कुछ याद आया, तो मैं अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘उफ, गरमी लग रही थी तो सैर से सीधी घर आ गई. कल सुबह के लिए सब्जी लाना ही भूल गई.’’ विपिन को फिर मौका मिला तो फिर अपना तीर छोड़ा, ‘‘होता है, उम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर होती ही है.’’
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एक तो सुबह क्या बनेगा, इस की टैंशन, ऊपर से फिर उम्र का व्यंग्यबाण, मैं सचमुच नाराज हो गई. मुंह से तो कुछ नहीं बोला पर विपिन को जलती नजरों से घूरा तो बच्चे समझ गए कि मुझे गुस्सा आया है, पर हैं तो ऐसी शरारतों में अपने पापा के चमचे ही न, अत: शाश्वत ने कहा, ‘‘मम्मी, आप सच ऐक्सैप्ट क्यों नहीं कर पा रहीं? कभी भी आप का बैक पेन बढ़ जाता है, कभी भी कुछ भूल जाती हो, मान लो मम्मी उम्र हो रही है.’’ वान्या को लगा कि कहीं मेरा गुस्सा न
बढ़ जाए. अत: फौरन बात संभाली, ‘‘चुप रहो शाश्वत मम्मी, सब्जी नहीं है तो कोई बात नहीं, हम तीनों कैंटीन में खा लेंगे. आप बस अपना खाना बना लेना.’’ मैं ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और फिर पर्स उठा, कर बोली, ‘‘देखती हूं पनीर मिल जाए तो ले आती हूं.’’
विपिन ने भी कहा, ‘‘अरे छोड़ो, कैंटीन में खा लेंगे सब.’’ जानती हूं विपिन को घर का खाना ही ले जाना पसंद है. उम्र बढ़ने की बात से मुझे गुस्सा तो आता है, चिढ़ती भी बहुत हूं पर प्यार भी तो करती हूं न उन्हें. अत: मैं उन्हें देख कर मुंह फुलाए हुए अपनी नाराजगी प्रकट करते घर से निकलने लगी, तो विपिन मुसकरा उठे. वे भी जानते हैं कि मेरा गुस्सा क्षणिक ही होता है.
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हम तीसरी मंजिल पर रहते हैं. मैं सीढि़यों से ही उतरती हूं. ज्यादा सामान होता है तभी लिफ्ट में आती हूं. पनीर ले कर लौट रही थी तो देखा लिफ्ट नीचे ही थी. कोई लिफ्ट में जा रहा था. मैं भी यों ही लिफ्ट में आ गई. साथ खड़े लड़के ने लिफ्ट में 7वीं मंजिल का बटन दबाया. मैं पता नहीं किन खयालों में थी कि तीसरी मंजिल का बटन दबाना ही भूल गई. दिमाग में विपिन की उम्र की बातें ही चल रही थीं न. जब अचानक लगा कि ऊपर जा रही हूं तो हड़बड़ा कर स्टौप का बटन दबा दिया. लिफ्ट रुक गई. आजकल कुछ गड़बड़ चल रही थी.
साथ खड़ा लड़का शालीनता से बोला, ‘‘क्या हुआ मैम?’’ मैं झेंप गई. कहा, ‘‘सौरी, गलती से कर दिया. मुझे तीसरी मंजिल पर जाना था.’’