‘‘मैं आप का दर्द समझता हूं. मैं भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहा हूं. कितनी खूबसूरत थी मेरी जिंदगी और आज क्या हो गई,’’ कौस्तुभ ने कहा. एकदूसरे का दर्द बांटतेबांटते कौस्तुभ और प्रिया ने एकदूसरे का नंबर भी शेयर कर लिया. फिर अकसर दोनों के बीच बातें होने लगीं. दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद आने लगा. वैसे भी दोनों की जिंदगी एक सी ही थी. एक ही दर्द से गुजर रहे थे दोनों. एक दिन घर वालों के सुझाव पर दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. कोर्ट में सादे समारोह में उन की शादी हो गई.कौस्तुभ को एक नाइट कालेज में नौकरी मिल गई. साथ ही वह शिक्षा से जुड़ी किताबें भी लिखने लगा और अनुवाद का काम भी करने लगा. 2 साल के अंदर उन के घर एक चांद सा बेटा हुआ. बच्चा पूर्ण स्वस्थ था और चेहरा बेहद खूबसूरत. दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. बेटे को अच्छी शिक्षा दिला कर ऊंचे पद पर पहुंचाना ही अब उन का लक्ष्य बन गया था. बच्चा पिता की तरह तेज दिमाग का और मां की तरह आकर्षक निकला. मगर थोड़ा सा बड़ा होते ही वह मांबाप से कटाकटा सा रहने लगा. वह अपना अधिकांश वक्त दादादादी या रामू काका के पास ही गुजारता, जिसे उस की देखभाल के लिए रखा गया था.
कौस्तुभ समझ रहा था कि वह बच्चा है, इसलिए उन के जले हुए चेहरों को देख कर डर जाता है. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 8वीं कक्षा के फाइनल ऐग्जाम के बाद एक दिन उस ने अपने दादा से जिद की, ‘‘बाबा, मुझे होस्टल में रह कर पढ़ना है.’’
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‘‘पर ऐसा क्यों बेटे?’’ बाबा चौंक उठे थे.कौस्तुभ तो अपने बेटे को शहर के सब से अच्छे स्कूल में डालने वाला था. इस के लिए कितनी कठिनाई से दोनों ने पैसे इकट्ठा किए थे. मगर बच्चे की बात ने सभी को हैरत में डाल दिया. दादी ने लाड़ लड़ाते हुए पूछा था, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा, भला यहां क्या प्रौब्लम है तुम्हें? हम इतना प्यार करते हैं तुम से, होस्टल क्यों जाना चाहते हो?’’ मोहित ने साफ शब्दों में कहा था, ‘‘मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारे मांबाप कितने बदसूरत हैं. इसीलिए वे मेरे घर भी नहीं आते. मैं इन के साथ नहीं रहना चाहता.’’ मोहित की बात पर दादी एकदम से भड़क उठी थीं, ‘‘ये क्या कह रहे हो? तुम तो जानते हो कि मम्मीपापा कितनी मेहनत करते हैं तुम्हारे लिए, तभी तुम्हें नएनए कपड़े और किताबें ला कर देते हैं. और तुम्हें कितना प्यार करते हैं, यह भी जानते हो तुम. फिर भी ऐसी बातें कर रहे हो.’’ तभी कौस्तुभ ने मां का हाथ दबा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला, ‘‘ये क्या कर रही हो मम्मी? बच्चा है, इस की गलती नहीं.’’
मगर कई दिनों तक मोहित इसी बात पर अड़ा रहा कि उसे होस्टल में रह कर पढ़ना है, यहां नहीं रहना. दादादादी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. आखिर पूरे घर में चहलपहल उसी की वजह से तो रहती थी. तब एक दिन कौस्तुभ ने अपनी मां को समझाया, ‘‘मां, मैं चाहता हूं, हमारा बच्चा न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहे और इस के लिए जरूरी है कि हम उसे अपने से दूर रखें. वह हमारे साथ रहेगा तो जाहिर है कभी भी खुश और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन सकेगा. मेरी गुजारिश है कि वह जो चाहता है, उसे वैसा ही करने दो. मैं कल ही देहरादून के एक अच्छे स्कूल में इस के दाखिले का प्रयास करता हूं. भले ही वहां फीस ज्यादा है पर हमारे बच्चे की जिंदगी संवर जाएगी. उसे वह मिल जाएगा, जिस का वह हकदार है और जो मुझे नहीं मिल सका.’’
2 सप्ताह के अंदर ही कौस्तुभ ने प्रयास कर के मोहित का ऐडमिशन देहरादून के एक अच्छे स्कूल में करा दिया, जहां उसे 70 हजार डोनेशन के देने पड़े. पर बच्चे की ख्वाहिश पूरी करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. मोहित को विदा करने के बाद प्रिया बहुत रोई थी. उसे लग रहा था जैसे मोहित हमेशा के लिए उस से बहुत दूर जा चुका है. और वास्तव में ऐसा ही हुआ. छुट्टियों में भी मोहित आता तो बहुत कम समय के लिए और उखड़ाउखड़ा सा ही रहता. उधर उस के पढ़ाई के खर्चे बढ़ते जा रहे थे जिन्हें पूरा करने के लिए कौस्तुभ और प्रिया को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ रही थी. समय बीतते देर नहीं लगती. मोहित अब बड़ा हो चुका था. उस ने बीए के बाद एम.बी.ए. करने की जिद की. अबतक कौस्तुभ के मांबाप दिवंगत हो चुके थे. कौस्तुभ और प्रिया स्वयं ही एकदूसरे की देखभाल करते थे. उन्होंने एक कामवाली रखी थी, जो घर के साथ बाहर के काम भी कर देती थी. इस से उन्हें थोड़ा आराम मिल जाता था. मगर जब मोहित ने एम.बी.ए. की जिद की तो कौस्तुभ के लिए पैसे जुटाना एक कठिन सवाल बन कर खड़ा हो गया. कम से कम 3-4 लाख रुपए तो लगने ही थे. इतने रुपयों का वह एकसाथ इंतजाम कैसे करता?
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तब प्रिया ने सुझाया, ‘‘क्यों न हम घर बेच दें? हमारा क्या है, एक छोटे से कमरे में भी गुजारा कर लेंगे. मगर जरूरी है कि मोहित ढंग से पढ़ाईलिखाई कर किसी मुकाम तक पहुंचे.’’ ‘‘शायद ठीक कह रही हो तुम. घर बेच देंगे तो काफी रकम मिल जाएगी,’’ कौस्तुभ ने कहा. अगले ही दिन से वह इस प्रयास में जुट गया. अंतत: घर बिक गया और उसे अच्छी रकम भी मिल गई. उन्होंने बेटे का ऐडमिशन करा दिया और स्वयं एक छोटा घर किराए पर ले लिया. बाकी बचे रुपए बैंक में जमा करा दिए ताकि उस के ब्याज से बुढ़ापा गुजर सके. 1 कमरे और किचन, बाथरूम के अलावा इस घर में एक छोटी सी बालकनी थी, जहां बैठ कर दोनों धूप सेंक सकते थे.
बेटे के ऐडमिशन के साथ खर्चे भी काफी बढ़ गए थे, अत: उन्होंने कामवाली भी हटा दी और दूसरे खर्चे भी कम कर दिए. अब उन्हें इंतजार था कि बेटे की पढ़ाई पूरी होते ही उस की अच्छी सी नौकरी लग जाए और वे उस के सपनों को पूरा होते अपनी आंखों से देखें. फिर एक खूबसूरत सी लड़की से उस की शादी करा दें और पोतेपोतियों को खिलाएं. मगर एक दिन मोहित के आए फोन ने उन के इस सपने पर भी पल में पानी फेर दिया, जब उस ने बताया कि पापा मुझे सिंगापुर में एक अच्छी जौब मिल गई है और अगले महीने ही मैं हमेशा के लिए सिंगापुर शिफ्ट हो जाऊंगा. ‘‘क्या? सिंगापुर जा रहा है? पर क्यों बेटे?’’ कौस्तुभ की जबान लड़खड़ा गई, ‘‘अपने देश में भी तो अच्छीअच्छी नौकरियां हैं, फिर तू बाहर क्यों जा रहा है?’’ लपक कर प्रिया ने फोन ले लिया था, ‘‘नहींनहीं बेटा, इतनी दूर मत जाना. तुझे देखने को आंखें तरस जाएंगी. बेटा, तू हमारे साथ नहीं रहना चाहता तो न सही पर कम से कम इसी शहर में तो रह. हम तेरे पास नहीं आएंगे, पर इतना सुकून तो रहेगा कि हमारा बेटा हमारे पास ही है. कभीकभी तो तेरी सूरत देखने को मिल जाएगी. पर सिंगापुर चला गया तो हम…’’ कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी.
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‘‘ओह ममा कैसी बातें करती हो? भारत में कितनी गंदगी और भ्रष्टाचार है. मैं यहां नहीं रह सकता. विदेश से भी आनाजाना तो हो ही जाता है. कोशिश करूंगा कि साल दो साल में एक दफा आ जाऊं,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया था. प्रिया के आंसू आंखों में सिमट गए. उस ने रिसीवर रखा और बोली, ‘‘वह फैसला कर चुका है. वह हम से पूरी तरह आजादी चाहता है, इसलिए जाने दो उसे. हम सोच लेंगे हमारी कोई संतान हुई ही नहीं. हम दोनों ही एकदूसरे के दुखदर्द में काम आएंगे, सहारा बनेंगे. बस यह खुशी तो है न कि हमारी संतान जहां भी है, खुश है.’’ उस दिन के बाद कौस्तुभ और प्रिया ने बेटे के बारे में सोचना छोड़ दिया. 1 माह बाद मोहित आया और अपना सामान पैक कर हमेशा के लिए सिंगापुर चला गया. शुरुआत में 2-3 माह पर एकबार फोन कर लेता था, मगर धीरेधीरे उन के बीच एक स्याह खामोशी पसरती गई. प्रिया और कौस्तुभ ने दिल पत्थर की तरह कठोर कर लिया. खुद को और भी ज्यादा कमरे में समेट लिया. धीरेधीरे 7 साल गुजर गए. इन 7 सालों में सिर्फ 2 दफा मोहित का फोन आया. एक बार अपनी शादी की खबर सुनाने को और दूसरी दफा यह बताने के लिए कि उस का 1 बेटा हो गया है, जो बहुत प्यारा है.