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सोनाक्षी ‘बाय’ बोल कर औफिस जाने लगी, तभी उस की भाभी लीना ने उसे रोका और खाने का डब्बा थमा दिया, जिसे वह आज भी भूल कर जा रही थी. मगर वह कहने लगी कि रहने दो, आज वह औफिस की कैंटीन में खा लेगी.

‘‘कोई जरूरत नहीं, ले कर जाओ. रोजरोज बाहर का खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होता,  झूठमूठ का गुस्सा दिखाती हुई लीना बोली, ‘‘मां को बताऊं क्या?’’

‘‘अच्छाअच्छा, ठीक है, लाओ, पर मां को कुछ मत बताना, वरना उन का भाषण शुरू हो जाएगा.’’ उस की बात पर लीना मुसकरा पड़ी और खाने का डब्बा उसे थमा दिया.

सोनाक्षी और लीना थीं तो ननदभाभी लेकिन दोनों सखियों जैसी थीं जिन्हें हर बात बे िझ झक बताई जा सकती है. ‘‘प्लीज भाभी, मां को मत बताना कि कभीकभार मैं कैंटीन में खा लेती हूं, वरना वह गुस्सा करेंगी,’ सोनाक्षी बोल ही रही थी कि विशाल उस के पीछे आ कर खड़ा हो गया.

लीना जानती थी वह कुछ न कुछ बोलेगी ही विशाल के बारे में और फिर दोनों के बीच बहसबाजी शुरू हो जाएगी. और वही हुआ भी. सोनाक्षी कहने लगी, ‘‘अब मैं निकलती हूं, वरना विशाल, गला फाड़ कर सोनाक्षीसोनाक्षी चिल्लाने लगेगा. अजीब इंसान है, कितनी बार कहा है नीचे से आवाज मत लगाया करो, सब सुनते हैं, पर नहीं, अक्ल से दिवालिया जो ठहरा, सम झता ही नहीं है.’’

‘‘अच्छा, तो अक्ल से दिवालिया इंसान हूं मैं, और तुम ज्ञान की पोटली,

‘‘ओहो... ओहो...’’ पीछे से विशाल की आवाज सुन सोनाक्षी ने दांतों तले अपनी जीभ दबा ली कि यह क्या बोल गई वह. अब तो यह विशाल का बच्चा छोड़ेगा नहीं उसे. ‘‘बोलो, चुप क्यों हो गईं? वैसे, मु झे लगता है दिमागी इलाज की तुम्हें जरूरत है क्योंकि आज औफिस बंद है. पता नहीं, शायद, आज ईद है?’’ बोल कर विशाल हंसा, तो लीना को भी हंसी आ गई.

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