Writer- Er. Asha Sharma
घर में पैसा आने से जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. कनु की दादी से अब घर का कामकाज नहीं हो पाता था, इसलिए उन की इच्छा थी कि घर में जल्दी से बहू आ जाए जो घर के साथसाथ जवान होती कनु का भी खयाल रख सके. मगर सोनू चाहता था कि 2-4 साल टैक्सी चला कर कुछ बचत कर फिर खुद की टैक्सी खरीद कर अपने पैरों पर खड़ा हो तब शादी की बात सोचे. इसलिए वह देर रात तक टैक्सी चलाता था.
इन सालों में मोबाइल आम आदमी के शौक से होता हुआ उस की जरूरत बन चुका था, साथ ही उस में कई तरह के आकर्षक फीचर भी जुड़ गए थे. सोनू को भी मोबाइल का शौक शायद अपने पापा से विरासत में मिला था. वह जब रात में घर लौटता था तो कानों में इयर फोन लगा कर तेज आवाज में गाने सुनता था. रात में ट्रैफिक कम होने के कारण टैक्सी की स्पीड भी ज्यादा ही होती थी.
एक दिन मोबाइल में बजने वाले गाने का टै्रक चेंज करते समय सोनू मोड़ पर आने वाले ट्रक को देख नहीं पाया और टैक्सी ट्रक से टकरा गई. ट्रक ड्राइवर तो घबराहट में ट्रक छोड़ कर भाग गया और सोनू वहीं जख्मी हालत में तड़पता पड़ा रहा. लगभग 1 घंटे बाद पुलिस गश्ती दल की मोबाइल वैन ने गश्त के दौरान उसे घायल अवस्था में देखा तो हौस्पिटल ले गई. वक्त पर हौस्पिटल पहुंचने से उस की जान तो बच गई, मगर सिर में चोट लगने से उस के दिमाग का एक हिस्सा डैमेज हो गया और वह लकवे का शिकार हो कर हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया. डाक्टर्स को उस के बचने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए उन्होंने सोनू को कुछ जरूरी दवाएं घर पर ही देने की सलाह दे कर हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.
कनु पर एक बार फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब तक सोनू हौस्पिटल में रहा तब तक तो उस के पापा ने इलाज के लिए पैसा दिया, मगर हौस्पिटल से घर आने के बाद फिर उन्होंने बच्चों की कोई सुध नहीं ली. घर खर्च के साथसाथ सोनू की दवाइयों के खर्च की व्यवस्था भी अब कनु को ही करनी थी.
कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक दिन बूढ़ी दादी बाथरूम में फिसल गईं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे भी चलनेफिरने से लाचार हो गईं.
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घरबाहर की सारी जिम्मेदारी अब कनु की थी. वह अब तक ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस ने एक कौल सैंटर में पार्टटाइम जौब कर ली. सुबह 11 से शाम 5 बजे तक वह कौल सैंटर में रहती थी. इस दौरान सोनू और दादी की देखभाल करने के लिए उस ने एक नर्स की व्यवस्था कर ली थी. घर लौटने के बाद देर रात तक घर से ही औनलाइन जौब किया करती थी. घरबाहर संभालती, कभी दादी तो कभी सोनू को दवाएं देती, उन की दैनिक क्रियाएं निबटाती कनु अकेले में फूटफूट कर रोती थी. मगर अंदर से बेहद कमजोर कनु बाहर से एकदम आयरन लेडी थी. मजबूत, बहादुर और स्वाभिमानी.
यहीं कौलसैंटर में ही उसे निमेश का साथ मिला था. अपनेआप में सिमटी कनु निमेश को एक पहेली सी लगती थी. कनु ने अपने चारों तरफ कछुए सा कठोर आवरण बना रखा था और निमेश ने जैसे उसे बेधने की ठान रखी थी. पता नहीं कैसे और कहां से वह कनु के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लाया था. कनु अभी नए मोबाइल हैंडसैट को हाथ में ही लिए बैठी थी
कि उस का पुराना फोन बज उठा. देखा तो निमेश का ही फोन था. कनु ने अपने आंसू पोंछे फोन रिसीव किया.
‘‘कैसा है बर्थडे गिफ्ट?’’ निमेश ने फोन उठाते ही पूछा.
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‘‘गिफ्ट तो अच्छा ही है, मगर मेरे किसी काम का नहीं… अगर किसी और लड़की पर ट्राई किया होता तो शायद तुम्हारे पैसे वसूल हो जाते…’’ कनु ने अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मजाक किया.
‘‘कोई बात नहीं… अभी शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, कल बात करते हैं,’’ कह कर निमेश ने फोन काट दिया.