‘तो आज भी मेमसाहब मुझ पर एहसान लादने चली आई हैं. और वह भी इस रूप में? क्या इस स्त्री को तनिक भी लाजशरम नहीं है? जीवन की इस संध्या बेला में यह चटख, चमकीले कपड़े, झुर्री पड़े, बुढ़ाते चेहरे को छिपाने के यत्न में पाउडर और लिपस्टिक की महकतीगमकती परतें. आंखों के आरपार खिंचा सिनेतारिकाओं का सा काजल और चांदी के तारों को छिपाने के यत्न में नकली बालों का ऊंचा फैशनेबल जूड़ा देख कर वितृष्णा से उन के मुंह में ढेर सी कड़वाहट घुल गई.
इंद्रा से पति की बेरुखी छिपी न रह सकी, ‘‘तुम आज भी नाराज हो न? पर क्या कर सकती हूं, समय ही नहीं मिलता आने का.’’
‘‘मैं तो तुम से कोई सफाई नहीं मांग रहा हूं?’’
‘‘तो क्या मैं समझती नहीं हूं तुम्हें. जब देखो मुंह फुलाए पड़े रहते हो. पर सच कहती हूं कि एक बार उन विदेशी महिलाओं को देखते तो समझते. किस कदर भारत पर फिदा हो गई हैं. कहती हैं, ‘यहां की स्त्रियों की संसार में कहीं भी समता नहीं हो सकती. कितनी शांत, कितनी सरल और ममतामयी होती हैं. घर, पति और बच्चों में अनुरक्त. असली पारिवारिक जीवन अगर कहीं है तो केवल भारत में. एक हमारा देश है जहां स्त्रियों को न घर की चिंता होती है, न बच्चों की. और पति नाम का जीव? उसे तो जब चाहो पुराने जूते की तरह पैर से निकालो और तलाक दे दो,’’ वह हंसी, ‘‘हमारे महिला क्लब को देख कर भी वे बेहद प्रभावित हुईं...’’
सुरेंद्र पत्नी के गर्व से दमकते चेहरे को आश्चर्यचकित सा देखते रह गए. पति, घर, बच्चे, सुखी पारिवारिक जीवन, ममतामयी नारियां? यह सब क्या बोल रही है इंद्रा? क्या वह इस सब का अर्थ भी समझती है? यदि हां, तो फिर वह सब क्या था? जीवनभर पति को पराजित करने की दुर्दमनीय महत्त्वाकांक्षा, जिस के वशीभूत उस ने एक अत्यंत कोमल, अत्यंत भावुक हृदय को छलनी कर दिया. उन का सबकुछ नष्ट कर डाला.