ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया है. एक रूम किराए पर ले कर अकेली रहती हूं. ज्यादा पढ़ीलिखी न होने के चलते कोई और नौकरी भी नहीं कर सकती.’’ काम करते हुए निहारिका के फोन की घंटी बारबार बजती है, पर वह फोन काट देती है. आशीष बजाज ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? किस का फोन है? कोई जरूरी है, तो बात कर लो न.’’ ‘‘नहीं सर, कोई जरूरी फोन नहीं है. दोस्त लोग हैं, ऐसे ही टाइमपास करते हैं. पहले काम निबटा लूं, फिर बात कर लूंगी.’’ ‘‘ठीक है. जैसी तुम्हारी मरजी. वैसे, ये कौन दोस्त हैं? कोई खास है क्या?’’ ‘‘नहीं सर, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप से ज्यादा खास कौन हो सकता है…’’ थोड़ा प्यार भरे अंदाज में बोली निहारिका. ‘‘वह तो है…’’ आशीष बजाज ने हंसते हुए कहा. निहारिका को आज आशीष बजाज के घर काम पर लगे 15 दिन हो गए थे और वह उन की चहेती बन गई थी.
उन के बहुत करीब भी आ गई थी. रात के 8 बजे डिनर के बाद निहारिका रोज अपने घर चली जाती थी, जबकि वह चाहती थी कि वहीं रुक जाए. लेकिन कैसे? आज आखिरकार निहारिका की मानो मुराद पूरी हो गई. आशीष बजाज ने कहा, ‘‘निक्की, कल मुझे मीटिंग के लिए दिल्ली जाना है. तो आते हुए मैं लेट हो जाऊंगा. कल रात को तुम यहीं रुक जाना और मेरी बहू के कमरे में सो जाना.’’ ‘‘ठीक है सर. अब मैं चलती हूं. सुबह समय से आ जाऊंगी.’’ निहारिका, जो अब आशीष बजाज के लिए ‘निक्की’ बन चुकी थी, घर से बाहर निकलते ही एक फोन मिलाती है. दूसरी ओर से इंस्पैक्टर रुस्तम पूछते हैं, ‘कुछ पता चला कि वे दोनों औरतें कैसे मरी थीं? हैड औफिस से बारबार फोन आ रहा है, मुझे जवाब देना है.’ ‘‘सर, केवल एक हफ्ता और. बस, इस के बाद केस आईने की तरह साफ होगा.
वैसे, कल रात आप फोन मत करना, बात नहीं हो पाएगी. कल रात को मुझे आशीष बजाज के घर पर ही रुकना होगा. जब समय मिलेगा तो मैं आप को फोन कर लूंगी.’’ ‘ठीक है, लेकिन तुम अपना खयाल रखना.’ ‘‘सर, आप मेरी चिंता न करें.’’ अगले दिन आशीष बजाज सुबह ही दिल्ली के लिए रवाना हो जाते हैं और देर रात गए घर वापस लौटते हैं. ‘‘कैसा रहा सफर? आप थक गए होंगे. आप फ्रैश हो जाइए, तब तक मैं खाना लगाती हूं,’’ निहारिका ने कहा. ‘‘थक तो मैं बहुत गया हूं आज, पर तुम्हें देख कर थकावट दूर हो गई. तुम ने खाना खाया?’’ आशीष बजाज ने पूछा.
‘‘अभी नहीं.’’ ‘‘तो आओ, तुम भी खा लो आज मेरे साथ,’’ आशीष बजाज के दबाव देने पर निहारिका भी डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती है और वे दोनों खाना खाते हुए इधरउधर की बातें करते हैं. इतने में निहारिका का फोन बारबार बजता है, तो उसे हैरानी होती है कि रुस्तम सर को मना किया था कि आज फोन न करें, फिर भी वे बारबार फोन कर रहे हैं. इस का मतलब जरूर कोई खास बात होगी. निहारिका जल्दी से खाना खा कर श्रेया के कमरे में जाती है और रुस्तम सर से बात करने लगती है. ‘‘सर, कोई खास बात… क्योंकि आप को तो पता है कि आज मैं यहीं बजाज हाउस में हूं?’’ ‘हां निहारिका, बहुत ही सनसनीखेज खबर है.’ ‘‘क्या सर?’’ ‘आज दिल्ली में भी एक मौत हुई है… वही गला घोंट कर मारना और उस के बाद खुदकुशी का रूप देना.’ ‘‘ओह नो…’’ यह कहते हुए तीनों खून की कड़ी मिलाते हुए निहारिका एक नतीजे तक पहुंच जाती है और आशीष बजाज के बेटे को सुजल और रुस्तम सर को 2 दिन में पहुंचने को कहती है.
इतने में आशीष बजाज निहारिका के कमरे में पहुंच जाते हैं और पूछते हैं, ‘‘किसी खास सहेली से बात कर रही थी क्या?’’ ‘‘जी हां, बहुत ही खास है. आज बहुत दिनों बाद बात हुई उस से.’’ आशीष बजाज उस से कहते हैं, ‘‘निक्की, मुझे तुम से कुछ कहना है…’’ ‘‘कहिए सर…’’ ‘‘निक्की, मैं चाहता हूं कि तुम हमेशा के लिए यहीं रह जाओ…’’ निहारिका अपना फैसला उन्हें बाद में बताने को कहती है. 2 दिन बाद रात को जब आशीष बजाज औफिस से आते हैं, तो घर में पुलिस को देख कर दंग रह जाते हैं. ‘‘निक्की, यह पुलिस यहां क्यों?’’ ‘‘आप के लिए.’’ ‘‘यह क्या बकवास है…’’ इतने में आशीष बजाज का बेटा सुजल भी दूसरे कमरे से निकल कर बाहर आ जाता है. ‘‘निहारिकाजी, यह सब क्या है? आप तो कह रही थीं कि जब पापा आएंगे, तो उन के साथ ही आप मुझे कातिल से मिलवाएंगी… आप पापा से ऐसे कैसे बात कर रही हैं…’’ सुजल ने पूछा.