एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’
उधर से कोई जवाब नहीं मिला.
‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.
‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.
‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’
उधर से फोन बंद हो गया.
विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.
औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.
एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’
विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.
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‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.
‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’
‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.
विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.
अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.
विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’
‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.
‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.
वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.
‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.
वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी. अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.
वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?
‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.
‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.
‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’
‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’
‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.
विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?
सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.
अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’
‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’
‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’
‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’
‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’
‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’
‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’
‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.
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‘‘चाचा के पास थोड़ी सी जमीन है जिस में सालभर के गुजारे लायक ही अनाज होता है. कभीकभार चाचा मुझे यहां ले कर आ जाता है.’
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‘‘मैं ने उस से पूछा, ‘जब चाचा ने इस काम में तुम्हें धकेला तो तुम ने विरोध नहीं किया?’
‘‘वह बोली थी, ‘किया था विरोध. बहुत किया था. एक दिन तो मैं ने यमुना में डूब जाना चाहा था. तब किसी ने मुझे बचा लिया था. मैं क्या करती? अकेली कहां जाती? कटी पतंग को लूटने को हजारों हाथ होते हैं. बस, मजबूर हो गई थी चाचा के सामने.’
‘‘फिर मैं ने उस से पूछा था, ‘इस दलदल में धकेलने के बजाय चाचा ने तुम्हारी शादी क्यों नहीं की?’
‘‘वह बोली, ‘मुझे नहीं मालूम…’
‘‘यह सुन कर मैं कुछ सोचने लगा था. तब उस ने पूछा था, ‘क्या सोचने लगे? आप मेरी चिंता मत करो और…’
‘‘कुछ सोच कर मैं ने कहा था, ‘सीमा, मैं तुम्हें इस दलदल से निकाल लूंगा.’
‘‘तो वह बोली थी, ‘रहने दो आप बाबूजी, क्यों मजाक करते हो?’
‘‘लेकिन मैं ने ठान लिया था. मैं ने उस से कहा था, ‘यह मजाक नहीं है. मैं तुम्हें यह सब नहीं करने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा.’
‘‘सीमा के चेहरे पर अविश्वास भरी मुसकान थी. एक दिन मैं ने सीमा के चाचा से बात की. एक मंदिर में हम दोनों की शादी हो गई.
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