SSC Exam Controversy: आपने हाल ही में क्या ‘एडुक्विटी’ शब्द सुना है? अगर नहीं तो ‘एसएससी ऐग्जाम विवाद’ तो जरूर सुना होगा, जिस पर देश के नौनिहालों ने जम कर हल्ला काटा था.

दरअसल, एडुक्विटी और एसएससी दोनों आपस में जुड़े हुए हैं और एसएससी ऐग्जाम विवाद की जड़ यह एडुक्विटी ही है. यह एक वैंडर है, जो एसएससी की सरकारी नौकरी के लिए पूरे तामझाम करता है. इसे थोड़ा तफसील से समझते हैं.

एडुक्विटी का पूरा नाम एडुक्विटी कैरियर टैक्नोलौजीस है. इस कंपनी को जुलाईअगस्त, 2025 में सैलेक्शन पोस्ट फेज-13 ऐग्जाम कराने का टैंडर दिया गया था. पर इस इम्तिहान में कई गड़बडि़यां होने पर उम्मीदवारों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.

यह कंपनी पहले एमपी-टैट (2022), पटवारी भरती (2023), महाराष्ट्र एमबीए-कैट (2023) जैसे ऐग्जामों को ले कर विवादों में रही थी. यहां तक कि मामला कोर्ट में भी पहुंचा था. इस दौरान इस कंपनी पर पेपर लीक, तकनीकी गड़बडि़यों के अलावा और भी कई तरह के आरोप लगे थे.

यह बैंगलुरु की एक कंपनी है, जो सीबीटी यानी कंप्यूटर बेस्ड टैस्ट कराने के लिए जानी जाती है. इस कंपनी के पास एसएससी के कई ऐग्जाम कराने का जिम्मा है. यह भी कहा जाता है कि एडुक्विटी कंपनी को 2 साल के लिए बैन किया गया था.

अगर सैलेक्शन पोस्ट फेज-13 ऐग्जाम के विवाद की बात करें तो ऐग्जाम देने वाले छात्रों की जो शिकायतें सामने आईं, वे कुछ यों थीं :

* जब ऐग्जाम देने गए तो वहां पर जवाब मिला कि ऐग्जाम पोस्टपोंड हो गया है. एक दिन पहले रात में मैसेज आया कि ऐग्जाम कैंसिल हो गया है.

* जहां ऐग्जाम हुआ, वहां कहीं माउस नहीं चल रहा था तो कहीं सर्वर की दिक्कत थी. कुछ वजहों से वैरिफिकेशन नहीं हो पा रहा था. 2-2 घंटे तक बैठा कर रखा गया और ऐग्जाम काफी लेट शुरू किया गया.

* यह ऐग्जाम एडुक्विटी कंपनी से करा रहे हैं, जो पहले मध्य प्रदेश में धांधली कर चुकी है. उस के चक्कर में मैं ने ऐग्जाम की तैयारी करनी बंद कर दी थी.

* सैंटर प्रैफरैंस का कोई मतलब नहीं है. जहां का भर रहे हैं, वहां से बहुत दूर ऐग्जाम सैंटर दे दिया.

* एआई के जरीए पेपर सैट हो रहा है और पेपर रिपीट हो रहा है.

* पेपर सेलेबस से बाहर से आ रहा है. 25 में से 6 तो आउट औफ सेलेबस सवाल हैं.

* एक पैरामीटर तय हो, कंप्यूटर ठीक हो, चेयर ठीक हो, स्टाफ का बिहवेयर ठीक हो.

* अगले दिन सेम सवाल आ रहा है, सिस्टम ठीक नहीं चलता, पैन खराब है.

* आगे भैंसें बंधी हैं और पीछे ऐग्जाम सैंटर है. टिन शैड के नीचे बस कंप्यूटर रखे हैं, गरमी में बच्चे परेशान रहते हैं.

ऐसी ही बहुत सी शिकायतों को लेकर जब उम्मीदवारों ने दिल्ली में शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया, जिस से यह राजनीतिक मुद्दा बन गया और स्टाफ सैलेक्शन कमीशन भी शक के दायरे में आ गया.

स्टाफ सैलेक्शन कमीशन एक स्वायत्त केंद्रीय सरकारी संगठन है, जिसे साल 1975 में बनाया गया था और
तब से यह केंद्रीय सरकारी सेवाओं के लिए उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी निभाता है.

इस का हैडक्वार्टर नई दिल्ली में है. यह संगठन ऐग्जाम कराने, आंसर शीट जांचने और रिजल्ट डिक्लेयर करने के लिए जिम्मेदार है.

पर जब से एसएससी ने अपना वैंडर बदला है, तब से उम्मीदवारों के सामने दिक्कतें ज्यादा आने लगी हैं, क्योंकि पहले टाटा कंस्लटैंसी सर्विसेज यानी टीसीएस पिछले कई सालों से इन ऐग्जामों का मैनेजमैंट करती रही थी. एडुक्विटी आने के बाद मामला गड़बड़ा गया है.

इस पूरे विवाद पर एनएसयूआई के अध्यक्ष वरुण चौधरी ने कहा, ‘‘यह सिर्फ ऐग्जाम में गड़बड़ी का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उस सरकार के रवैए का मामला है, जो इंसाफ मांग रहे नौजवानों को चुप कराना चाहती है.’’

क्या सच में सरकार का रवैया यह जाहिर करता है कि वह नौजवानों को चुप कराना चाहती है?

दरअसल, जब भी कोई आम आदमी एसएससी ऐग्जाम के बारे में सोचता है, तो उसे लगता है कि यही संगठन सबकुछ इंतजाम करता है. पर जब हम किसी और संस्था को यह सब करने का ठेका दे देते हैं, तो यही लगता है कि सरकार अपने दम पर एक ऐग्जाम भी नहीं करा पाती है, तभी ऐसी गड़बडि़यां सामने आती हैं.

वैसे ही देश में अब सरकारी नौकरियों का अकाल है. सारे काम वैंडरों के भरोसे हो रहे हैं. ऐसे में उम्मीदवारों को जब यह खबर मिलती है कि ऐग्जाम ही कैंसिल हो गया है, तब वे खुद को ठगा सा महसूस करते हैं.

अगर ऐग्जाम होता भी है तो पता चलता है कि दिल्ली के उम्मीदवार को ऐग्जाम देने लखनऊ जाना है.

मतलब लखनऊ आनेजाने, वहां रहनेखाने का खर्च अलग से भुगतो. ऐग्जाम की फीस भी कम नहीं होती है.

ऐसे में उम्मीदवार अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे या इस बात पर कि ट्रेन की टिकट मिलेगी या नहीं? अगर ऐग्जाम सैंटर पहुंचने में देर हो गई तो फिर बैठे रहो बाहर.

इतना ही नहीं, जब कोई उम्मीदवार अनजान शहर ऐग्जाम देने जाता है तो कम से कम एक जोड़ी कपड़े बैग में रखता है. पर सैंटर में कोई भी फालतू सामान ले जाने की मनाही होती है, तो उम्मीदवार को बेवजह बाहर किसी पनवाड़ी या दूसरे दुकानदार के पास अपना बैग रखना पड़ता है, वह भी पैसे दे कर.

इसी चक्कर में बहुत से लोगों ने ऐग्जाम सैंटर के बाहर बैग रखने का धंधा खोल रखा है. वे अपने ठहिए पर एक फोटोकौपी मशीन और स्टेशनरी का सामान रख लेते हैं.

यह उन गरीब, वंचित समाज के लोगों पर मार है, जो किसी तरह अपनी मेहनत के दम पर सरकारी नौकरी पाने का सपना देखते हैं, पर फुजूल के खर्चे उन का हौसला तोड़ देते हैं और जब ऐग्जाम ही रद्द हो जाता है या उस में गड़बड़ी दिखती है, तो उन का समाज में बराबरी पाने का हक कहीं पीछे छूट जाता है. यही सरकार की साजिश है कि गरीबों को उबरने ही न दिया जाए. SSC Exam Controversy

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...