'प्रीति' का शाब्दिक अर्थ है प्यार, प्रेम. पर किसी लड़की का नाम प्रीति रख देने से उसे समाज में प्यार और प्रेम मिलेगा, यह जरूरी नहीं है. और अगर उस प्रीति में कोई शारीरिक खोट है, तो आप समझ सकते हैं कि उस की मानसिक दशा क्या रही होगी.

ऐसी ही कहानी 23 साल की प्रीति पाल की है, जो आज खेल की दुनिया का चमकता सितारा बन गई हैं, पर इस रोशनी को पाने के लिए प्रीति ने कितने अंधेरों का सामना किया है, यह तो वे ही बता सकती हैं.

हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक छोटे से गांव हशमपुर में रहने वाली प्रीति पाल की, जिन्होंने पैरिस पैरालिंपिक खेलों में महिलाओं की टी35 100 मीटर दौड़ और टी35 200 मीटर दौड़ में कांसे का तमगा जीत कर इतिहास रच दिया है. इतना ही नहीं, प्रीति पाल पैरालिंपिक खेलों में  एथलैटिक्स में मैडल जीतने वाली पहली भारतीय धावक बन गई हैं. टी35 में वे खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं, जिन में हाइपरटोनिया, अटैक्सिया और एथेटोसिस जैसे विकार होते हैं.

प्रीति पाल बचपन में ही सेरेब्रल पाल्सी नामक बीमारी से पीड़ित रही हैं. यह एक तरह का मस्तिष्क पक्षाघात होता है, जिस से मांसपेशियों की गति पर असर पड़ता है. नतीजतन, पीड़ित के चलनेफिरने और संतुलन बनाने में कमी आ जाती है. प्रीति का भी इलाज चला था और 5वीं तक की पढ़ाई गांव में करने के बाद वे मेरठ आ गई थीं. फिर और अच्छा इलाज कराने के मकसद से उन्हें दिल्ली लाया गया जहां, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कोच गजेंद्र सिंह से के मार्गदर्शन में उन्होंने ट्रेनिंग लेना शुरू किया.

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