पहले बसाई जाती है, फिर खाली कराई जाती है, झुग्गी बस्ती से कुछ ऐसे वफा निभाई जाती है.
यह खेल न जाने कितने सालों से बदस्तूर चल रहा है. अब तो अतिक्रमण को ले कर सुप्रीम कोर्ट के तेवर भी तीखे हैं. वह कहता है कि दिल्ली की सड़कें साफ चाहिए ताकि सड़क व फुटपाथों पर चलने वालों को राहत मिले.
अदालत ने यह भी कहा कि सार्वजनिक जगहों और अनऔथराइज्ड कालोनियों मे गैरकानूनी निर्माण पर फौरन रोक लगे.
सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी से दिल्ली की सियासत में एक तरह की लड़ाई चल रही है. भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों के बीच एकदूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है.
आरोपप्रत्यारोप की इस राजनीति में गरीब लोगों का नुकसान होता है. बड़ी गाज तो उन गरीबों पर पड़ती है जो रहते भी कब्जाई जगह पर हैं और खातेकमाते भी कब्जाई जगह पर ही.
मान लीजिए कोई आदमी किसी झुग्गीझोंपड़ी बस्ती में रहता है, जहां उस पर यह तलवार हमेशा लटकती रहती है कि कब सिर से छत हट जाए. अगर किसी सड़क किनारे वह छोलेकुलचे बेचने का ठेला लगाता है, तो वहां भी उसे यही डर सताता रहेगा कि कब ‘कमेटी वाले’ अपनी गाड़ी लेकर आ धमकेंगे और उस का तामझाम फेंक कर सामान अपने साथ ले कर चलते बनेंगे या कभी ऐसा सरकारी फरमान ही न आ जाए कि भविष्य में कोई भी सड़क किनारे, फुटपाथ पर अपना?ठेला लगा कर सामान नहीं बेच पाएगा.
यहां पर ऐसे लोगों का कतई पक्ष नहीं लिया जा रहा है जो कानून या सरकार के बनाए कानून की धज्जियां उड़ा कर सड़कों पर अतिक्रमण करते हैं पर अगर सभी को रोजीरोटी कमाने, सिर पर छत होने का बुनियादी हक है, तो फिर ऐसे लोगों के साथ तो ज्यादती ही कही जाएगी जो मेहनत की कमाई से अपनी जिंदगी गुजरबसर करना चाहते हैं. उन का कुसूर बस इतना है कि उन्हें अपनी ईमानदारी की कमाई सड़क या फुटपाथ का एक छोटा सा हिस्सा घेर कर करनी पड़ रही है.
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