कानपुर शहर के स्वरूपनगर इलाके में एक मोहल्ला है आर्यनगर. इस मोहल्ले में ज्यादातर उच्च या मध्यमवर्ग के लोग रहते हैं. रूपेश गौतम का परिवार आर्यनगर में धर्मशाला के पास रहता था. उन के परिवार में पत्नी प्रीति के अलावा 2 बेटियां वंदना और अंकिता थीं. वंदना ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, पर थी सुंदर. सयानी होते ही रूपेश गौतम ने उस का विवाह रमेश से कर दिया था. रमेश सरकारी नौकरी में था. वंदना अपने पति के साथ खुश और सुखी थी.

रूपेश गौतम की दूसरी बेटी अंकिता भी काफी सुंदर थी. अंकिता जैसेजैसे सयानी होती गई, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. 17 वर्ष की होतेहोते यौवन ने अंकिता की सुंदरता में चार चांद लगा दिए. अंकिता की खूबसूरती ने कई युवकों को उस का दीवाना बना दिया. सूरज भी उन्हीं दीवानों में एक था.

सूरज अंकिता के पड़ोस में ही रहता था. उस के पिता भैरोप्रसाद गौतम औटो पार्ट्स का व्यापार करते थे. जबकि सूरज इलेक्ट्रीशियन था और मकानों में बिजली की वायरिंग के ठेके लेता था. 5 भाइयों में सूरज तीसरे नंबर का था. वह हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ सका था. बाद में उस ने अपने एक दोस्त की सलाह पर बिजली का काम सीखा और कुशल इलेक्ट्रीशियन बन गया.

सूरज हृष्टपुष्ट सजीला नौजवान था. वह खूब कमाता था और बनसंवर कर रहता था. सूरज मन ही मन अंकिता को चाहने लगा था. अंकिता भी उस की आंखों की भाषा समझती थी. वह उसे अच्छा भी लगता था. फलस्वरूप धीरेधीरे उस के मन में भी सूरज के प्रति आकर्षण पैदा होने लगा.

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