हमारे देश के महानगर हों या नगर, अधिकांश स्त्री को घर में काम करने वाली बाइयों से वास्ता पड़ता ही है. ज्यादातर स्त्रियां औफिस, बिजनैस, किसी कला या फिर पारिवारिक व्यस्तताओं में इतनी डूबी होती हैं कि उन के पास रोजमर्रा की घरेलू साफसफाई करने के लिए न तो ऊर्जा बचती है, न ही समय. ऐसे में घर के कामों में मदद के लिए कामवाली बाइयां उपयुक्त हैं. मगर ये बाइयां अपनी मालकिनों को परेशान करने की कला में भी कम निपुण नहीं होतीं.

यहां हम कामवालियों के नएपुराने फरमानों और उन के नखरों से उत्पन्न होने वाली दैनिक जीवन की परेशानियों की बात कर रहे हैं, जिन्हें झेलने के लिए घर की महिलाएं ही रह जाती हैं. यों कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कामवाली औरतों को संभालना आज एक कठिन मोरचे पर खुद के आत्मसमर्पण करने जैसा है.

नमिता सुबह 5 बजे उठती है. दोनों बच्चों को स्कूल भेजना, पति का औफिस और फिर खुद जौब के लिए निकलना. सुबह 9 बजे तक अफरातफरी के बीच सिंक में रात के बरतनों का ढेर, सफाई के बाट जोहते बासी कपड़े, झाड़ूपोंछा को तरसते फर्श, और तो और, इन सब के बीच एकएक बरतन धो कर नाश्ते के इंतजाम में लगी नमिता को परेशान करती घड़ी की बेरहम रफ्तार और घरवालों की एकएक काम के लिए नमिता के नाम की चीखपुकार. तब भी नमिता को अपना आपा सही रखना है क्योंकि घर में सासससुर हैं जो नमिता के बाहर जाने के बाद बहू द्वारा पकाए गए खाने पर निर्भर रहेंगे.

इस बीच, बाई का आना और उस के कामों की मीनमेख निकालती सास की बाई से खिटपिट हो जाना, बाई का नमिता को काम छोड़ने की धमकी देना आदि नमिता की जिंदगी के रोजमर्रे का कैलेंडर है. कई बार दैनिक जीवन की उलझनों में बाई द्वारा पैदा की गई असुविधाएं इतनी बढ़ जाती हैं कि औरों की तरह नमिता भी अपनी क्षमता से बाहर जा कर भी घरेलू काम स्वयं ही कर लेना पसंद करती है. रोजरोज बाई से किसी न किसी मुद्दे पर बहस कौन करे?

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