एक तरफ बिहार सरकार विकास का ढोल पीट रही है, वहीं दूसरी तरफ समस्तीपुर जिले के एक ही परिवार के 5 सदस्यों ने माली तंगी से ऊब कर फांसी लगा ली. मरने वालों में मनोज झा, उन की मां सीता देवी, पत्नी सुंदरमणि देवी, बेटे सत्यम और शिवम शामिल हैं. हर घटना की तरह इस कांड की भी जांच होगी. कोशिश की जाएगी कि इसे किसी तरह साबित कर दिया जाए कि यह सामूहिक खुदकुशी कांड कर्ज और माली तंगी की वजह से नहीं हुआ है. इस सिलसिले में शिक्षा और सामाजिक सरोकार से जुड़े प्रोफैसर राम अयोध्या सिंह ने बताया कि रातदिन अखबारों और अलगअलग मीडिया चैनलों के जरीए केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की उन की सहयोगी नीतीश कुमार की सरकार अपने विकास के लंबेचौड़े दावे करती थकती नहीं.

इन के बड़बोलेपन का सिर्फ एक ही मतलब निकलता है कि भारत और बिहार विकास के मामले में दुनिया के सिरमौर हैं. भारत और बिहार के सभी बाशिंदे सुखचैन की जिंदगी बसर कर रहे हैं. एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार धर्म और राष्ट्र की आड़ में पूरे देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर देश की सारी संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों, उद्योगों और लोक उपक्रमों, कलकारखानों, कंपनियों और निगमों व आवागमन के साधनों को पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हवाले करने में जीजान से जुटी हुई है, तो दूसरी तरफ बिहार की नीतीश सरकार भी मोदी के पदचिह्नों पर चलते हुए विकास के नाम पर विनाश की गाथा लिख रही है.

पुल, पुलिया, सड़क और भवन निर्माण को छोड़ कर पूरे बिहार की खेती, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य, रोजगार के अवसर, पर्यटन और दूसरे सभी क्षेत्रों को बरबाद कर देने वाले नीतीश कुमार अपने बड़बोलेपन को किस आधार पर सही साबित करेंगे, जब बिहार के समस्तीपुर जिले के विद्यापतिनगर थाने में एक पूरे परिवार के 5 सदस्यों ने एकसाथ सामूहिक खुदकुशी कर अपनी जिंदगी खत्म कर दी. ये लोग गरीब थे और लाचार भी थे. गरीबी और लाचारी का दंश सहतेसहते इस कदर ऊब गए थे कि इन्होंने जीने की आस छोड़ कर जिंदगी को ही खत्म करना जरूरी समझा. क्या यह नीतीश कुमार के गाल पर औंधे विकास का तमाचा नहीं है,

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...